आज मशरिक़े उस्ता (Middle East)
की हालत बहोत नाज़ुक मोड पर है। एक तरफ जहा इसराएल अपनी पकड़ बनाने मे
कमियाब होता नज़र आ रहा है, वही बहोत से मुस्लिम देश अंदरूनी ना अमनी का
शिकार है। ऐसे मे पश्चिमी मीडीया गलत खबरो से लोगो के ज़ेहनो को बेहकने का
काम कर रहा है।
जहा
मिस्र (Egypt) मे फिर से फ़ौजी हुकूमत नफ़ीज़ हो गई है और अमेरिकी प्यादे
सौदी, क़तार, कुवैत और दीगर ममालिक मे अपनी पकड़ जमाए बैठे है, वही पर वो
मुल्क जो अमेरिका की बात मानने को राज़ी नहीं है उन्हे तरह तरह की परेशानिओ
का सामना करना पद रहा है। इसमे सारे फेहरिस्त ईरान और सिरिया के नाम है।
अरब
स्प्रिंग के नाम से मशहूर एक बगावती लहर जो बहोत से मुस्लिम मुल्को मे उठी
थी उसके बाद अरब मुल्को का नक्शा बदल गया। ४० साल से हुस्नी मुबारक की
सत्ता का खात्मा हुआ, वही ट्यूनिस मे भी सत्ता मे फेर बदल देखा गया। लेकिन
इस बगावती लहर से ईरान और सिरिया मे ज़्यादा फेर बदल देखने नहीं मिला।
अमेरिका
समेत पश्चिमी मुल्को ने इस लहर से ईरान और सिरिया मे तख्ता पलट करने की
बहोत कोशिशे की लेकिन उन्हे कमियाबी नहीं मिल सकी। जिसके बाद उन्होने वहा
के बाग़ी गिरोहो को असलहा (weapons) मुहय्या करना शुरू किया और इस बगावत ने
एक नया रुख ले लिया। ये माजरा सिरिया का है जहा बशर असद की हुकूमत है।
ईरान मे किसी भी तरह की कोई शार अंगेज़ चाल खरी नहीं उतर पाई।
सिरिया
मे माजरा इतना आगे बढ़ा के इसने गृह युध्ध (Civil War) का रुख ले लिया।
सिरिया मे बाग़ी गिरोह मे अवाम बिल्कुल नहीं थी बल्कि इसमे अक्सर बेरूनी
मुल्क के अफरड शामिल थे। जिनमे सौदी अरब, क़तार, कुवैत, चेचनिया, ब्रिटन,
और दीगर पस्चिमी मुल्को के लोग शामिल हुए।
इन
लोगो को जिहाद के नाम पर सिरिया भेजा गया और कहा गया के असद की हुकूमत का
तख्ता पलट कर के वहा एक इस्लामी हुकूमत बनाना इन लोगो का काम है। इस गिरोह
मे ISIS, ISIL और जबात अन नुसरा जैसे गिरोह शामिल है। इन गिरोहो ने सिरिया
मे बहोत तबाही मचाई और बहोत बड़े हिस्से पर क़ब्ज़ा कर लिया। जिसे वापस
अपने क़ब्ज़े मे लेने के लिये सिरिया को लोहे के चने चबाने पड़ गए। सिरिया
और लेबनॉन के सरहद पर अल क़ुसैर नमक इलाक़े मे मारेका इतना शदीद था के असद
को लेबनॉन से हेज़बुल्लाह के जंगजू की मदद लेनी पड़ गई।
अमेरिका
और उसके सहयोगी देशो ने अपनी पूरी ताक़त झोक दी के असद की हुकूमत उखड़ जाए
लेकिन बात नहीं बनी। बहोत से बैनल अक़वामी नशीषते (International
Conferences) हुई जिसमे ये दिखाने की कोशिश की गई के वो सिरिया के मसले का
हाल चाहते है, लेकिन इन सब का कुछ फाएदा नहीं हुआ।
बशर
अल असद ने अपना ज़ोर दिखाने के लिये सिरिया मे सद्री चुनाव (Presidential
Elecitons) का एलान कर दिया जिसमे तक़रीबन ७३% लोगो ने बढ़ चड़ कर हिस्सा
लिया और असद को ८६% वोट मिले। इस नतीजे के बाद तो समझो बाग़ी ताक़तो की
क़मर टूट गई।
और इन लोगो ने कमज़ोर पड़ोसी मुल्क इराक़ का रुख कर लिया।
और इन लोगो ने कमज़ोर पड़ोसी मुल्क इराक़ का रुख कर लिया।
ये
वही इराक़ है जहा सन २००३ मे सद्दाम के खिलाफ अमेरिकी सेना ने हमला किया
था और सद्दाम को हटा कर अवामी हुकूमत नफ़ीज़ की थी। लेकिन अमेरिका ने इस
हुकूमत को इस हालत मे छोड़ा था के पूरा इराक़ एक साथ जुड़ा हुआ नहीं रहे।
इराक़ का उत्तरी हिस्सा (Northen Part) कुर्दो का हिस्सा एलान किया और
बक़िया हिस्से मे, जहा शीया और सुन्नी, मिल कर रेहते है, वहा शीया प्राइम
मिनिस्टर बना दिया। इन सब के साथ, इराक़ मे कुछ ऐसे गिरोह भी बना दिये जो
शिद्दत पसंद और कट्टर सोच के लोग थे, जैसे अल-क़ाइडा और उस जैसे गिरोह।
२०१३
मे जब अमेरिकी सेना ने इराक़ को छोड़ा तो वहा की फ़ौज के पास इतनी ताक़त
नहीं थी की वो इन कट्टर ताक़तो का मुक़ाबला कर सके। इसलिये आए दिन वहा बम
धमाके और खुरेज़ी होती रही। मुक़द्दस मक़ामात जैसे समररा, कर्बला और नजफ़
पर भी हमले किये गए। इन सब हालत के बीच, सिरिया से भागे हुए बाग़ी गिरोह
इराक़ के उत्तरी सरहद से घुसना शुरू हुए और देखते ही देखते बहोत से बड़े
शेहरो पर क़ब्ज़ा कर लिया।
यहा
सोचने की बात येह है के फ़ौज के कई हज़ार लोग चंद आतंकवादियो से ऐसे हार
गए जैसे पेहले से कुछ बात तय हो चुकी हो। जिसके बाद इराक़ी प्राइम मिनिस्टर
ने बाक़ाएदा एलान किया की जो लोगो ने अपनी ड्यूटी छोड़ कर भागे थे उनके
खिलाफ सख्त कारवाही की जाएगी। ये बाद याद रहे की इन भागने वालो मे अक्सर
अफसर सद्दाम के काल के फ़ौजी थे जिनके दिलो मे फिलवक़्त की हुकूमत के खिलाफ
ज़हर था।
ये
आतंकवादी जो अपने आप को ISIS बताते है, इनका अगला एलान है के ये कर्बला,
समररा, नजफ़ और बग़दाद पर क़ब्ज़ा जमा कर इराक़ी हुकूमत को हथियाना चाहते
है और जितने भी मुक़द्दस मक़ामात है उन का खात्मा करना चाहते है। इन
सब के चलते, पश्चिमी मीडीया, इस फितने को शीया सुन्नी झगड़े का रंग देने
की कोशिश कर रहा है जबकी ये इराक़ीयो की आतंकवादियो के खिलाफ लड़ाई है, ना
की फिरकावारियत की जंग।
इराक़
के बड़े शीया मुजतहिद, अयातुल्लाह सीस्तानी ने भी सभी इराक़ीयो को फ़ौज का
साथ देने का एलान किया जिसको BBC और दीगर पश्चिमी मीडीया ने गलत रिपोर्ट
करते हुए कहा की अयातुल्लाह ने शिओ को सुन्नी के खिलाफ हथियार उठाने के
लिये कहा है। बाद मे इन मीडीया चॅनेल्स ने अपनी किये की गलती भी क़ाबुल की।
इन
मीडीया चॅनेल्स के जैसे बहोत से मौलवी और बिके हुए मुल्ला भी इस लड़ाई को
शीया सुन्नी लड़ाई का रंग देने की कोशिश कर रहे है। समझदारी इसमे है की
अवाम मामले की नज़ाकत को समझते हुए ये जाने की ये लड़ाई अवाम की उन लोगो के
साथ है जिन्हे अमेरिका और उसके साथी मुल्क पैसो और असलाहो से मदद कर रहे
है।
अगर अवाम साथ रही तो बेशक जीत अवाम की होगी और ये शार पसंद ताक़ते जल्द ही हार का मज़ा चखेगी।
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