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Monday, 11 August 2014

क्या जन्नतुल बक़ी का सानेहा शिया सुन्नी इखतेलाफ का नतीजा है?

आज से तक़रिबन 90 साल पहले इस्लाम के सबसे पकिज़ा शहरो मे से एक शहर, मदीना मुनव्वारा मे जन्नतुल बक़ी नामी कब्रस्तान को बुल्डोज़र की मदद से मिसमार कर दिया गया। क्या ये हरकत करने वाले किसी दूसरे मज़हब के माननेवाले थे? नहीं, बल्की कलमा गो थे, अल्लाह पर और उसके रसूल (स्) पर ईमान रखते थे और खुद को मुसलमान बुलाते थे।



  • फिर इन मुसलमनो ने इस्लाम की अज़ीम निशानी, जन्नतुल बक़ी को कैसे मिसमार कर दिया?
  • क्या इन मुसलमनो मे और दूसरे मुसलमनो मे कोई फर्क है?
  • क्या ये मुसलमान रसूल (स्) और उनकी आल और असहाब से मुहब्बत नहीं रखते?
  • 1300 साल से जो मकबरे और क़ब्रे जन्नतुल बक़ी मे काएम और दाएम थी, उन्होने इन क़ब्रों को क्यू ज़मीनदोस कर दिया?

ये बहुत से सवाल आम इंसान के ज़हन मे आना ज़रूरी है। आए.. हम इन सवालत को तरीख की नज़र से देखने की कोशिश करते है।

जिन लोगो ने जन्नतुल बक़ी को मिसमार किया वो आले सउद से थे और अपने आप को मुहम्मद बिन अब्दुल वहाब का माननेवाला ताबीर करेते थे।

 
ये इब्ने वहाब कौन है? 
सन 1703 ई. मे जनम लेने वाले मुहम्मद बिन अब्दुल वहाब ने इस्लाम का एक नया नजारिया पेश किया जिसमे आम मुसलमान अकीदे से हटकर नए नजारियात पेश किए और जिन्होने इन नए अकाएद् को मानने से इंकार किया उन्हे काफिर घोषित कर के उनके कतलए आम का एलन कर दिया।






इसका नजारिया क्या था और इसने ये नजारिया कहा से लिया?
मुहम्मद बिन अब्दुल वहाब इब्ने तैमिया के मानने वालो मे से था। लेकिन उसने इब्ने तैमिया के नजारिये को कट्टर तरीके से लोगो पर थोपने का काम किया। इब्ने तैमिया इमाम अहमद बिन हम्बल के तरीके को मनता था और सुन्नी फिक्र के हंबली मसलक मे से था। इब्ने तैमिया अपने ज़माने के सुन्नी हज़रात के कुछ अकिदो से अलग राए रखता था जिनमे खास तौर पर अल्लाह से मंगते वख्त वसीला इखतियार करना और नबी ए करीम हज़रत मुहम्मद (स्) की ज़ियारत पर जाना शामिल थे।

लेकिन इब्ने तैमिया ने कभी किसी पर अपने इस अकीदे के ना मानने की बीना पर कुफ्र का फतवा नहीं दिया। इब्ने वहाब ने इब्ने तैमिया के इन्ही अकाएद् के आगे बढाते हुए इन्हे नए तरीके से पेश किया लेकिन हुकुमती मदद ना मिलने की बीना पर इसे लोगो मे फैला नहीं सका। इब्ने वहाब ने इस वक्त हिजाज़ मे नज्द इलाके मे आले स्उद के सरदार उस्मान बिन मुअम्मर के सामने पेशकश रखी के वो इसके अकाएद् को अपना आईन बना कर एक तेहरीक चलाए और हिजाज़ मे वहाबी मुहिम को आम करे।

१८वी सदी मे इब्ने वहाब को आले स्उद का साथ मिला और इन लोगो ने हिजाज़ मे हर जगह कतल ओ घारत मचा कर इस खित्ते को अपने कब्ज़े मे करने की पुरी कोशिश करी। ये हमले 70 साल तक जारी रहे। सबसे बड़ा हमला इन लोगो ने 1802 ई. मे करबला पर किया, जिसमे बहुत लोगो की जाने गई और वहाबियों ने हरम ए इमाम हुसैन (अ) को काफी नुक्सान पहुचाया और वहा की बेशकिमती चिज़ों को चुरा लिया।


सन 1818 मे इस इलाके मे हुकुमत पाज़ीर सुन्नी उस्मानिया खिलाफत ने वहाबियों के खिलाफ कारवाई कर के उन पर ज़बरदस्त हमला किया और उन्हे करबला समेत इराक से खदेड दिया। उस्मानिया खिलाफत ने वहाबियों को इतना नुक्सान पहुचाया के वो लोग घोशानशीन हो गए और अगले 100 सालो तक कुछ ना कर सके। लेकिन इन वहाबियों ने सुन्नी उस्मानिया हुकुमत को तोडने के लिये खामोशी से अंग्रेज़ों का साथ दिया और पहले विश्व युद्ध (World War I) के नतीजे मे उस्मानिया खिलाफत के तुटने के बाद अंग्रेज़ों ने हिजाज़ की हुकुमत इन्ही आले स्उद को दे कर हिजाज़ को स्उदी अरब बना दिया।

याद रहे के ये स्उदी ना सुन्नी मुसलमनो को सही मानते है ना शिया मुसलमनो को। जो भी इनके अक़ीदे के खिलाफ रहता है ये उन्हे काफिर कह कर उसे वजीबुल कत्ल मानते है और इनके माननेवाले उन्हे सरेआम कत्ल करते फिर रहे है। ये कभी अल-काएदा के नाम से, कभी अल-नुसरा के नाम से, कभी दाएश के नाम से, कभी ISIS के नाम से मुसलमनो को ही मार कर इस्लाम का नाम बदनाम करते है।

इनका अकीदा है के कोई भी वसीला इखतियार नहीं कर सकता और कोई भी किसी बुज़ुर्ग, हत्ता खुद रसुल्लाह (स्) की ज़ियारत पर नहीं जा सकता और इसी बीना पर इन आले स्उद ने मदीना मे मुकिम जन्नतुल बक़ी को मिस्मार कर दिया। इस जन्नतुल बक़ी मे रसुल्लाह (स्) की आल, अज़वाज और असहाब के मज़ारात है, जिनकी शिया और सुन्नी, दोनों मसलक के लोग ताज़ीम करते है। इन आले स्उद ने दुनिया के तमाम मुसलमनो के जज़बात का ख्याल ना करते हुए, मक्का और मदीना के तमाम इसलामी निशनियो को निस्तोनाबूद कर दिया। हुमारी


आज से 90 साल पहले तक मक्का और मदीना मे वो घर और गलिया हुआ करती थी जहा रसुल्लाह (स्) ने ज़िंदगी गुजारी और इस्लाम की तबलीग की लेकिन आज उन सब निशनियो की जगह होटल और स्उदी महल बने हुए है। आने वाली नस्ले हम से सवाल करेगी के इस्लाम की कोई निशानी बाकी भी है या नहीं।

आज कुछ लोग बाकी के सनिहे को शिया और सुन्नी मसले का रुख देते है और अवाम को एक दूसरे के खिलाफ भडकाते है। हमे ये समझना चाहिये के हम असली बात को पहचाने और हकीक़ी दुश्मन को पहचान्ने की कोशिश करे।

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