कुछ लोगो का, जिनमे अरब और मुसलमान भी शामिल है, का ये सोचना है कि गाज़ा
पर हुए हमले के लिये "हमास" ज़िम्मेदार है। अगर हमास इसराईल पर रॉकेट से
हमले करना छोड दे तो इसराईल भी गाज़ा पर अपने हमले बंद कर देगा।
इस सोच की सबसे बड़ी तकलीफ ये है की इन्हे लगता है ये मसला अभी कुछ रोज़ या
महीनो पहले का है, जो कि वेस्ट बैंक मे तीन इसराईली लड़को के अगवा होने और उनकी
हत्या के बाद शुरू हुआ। ये मसला पिछले महीन या पिछले साल शुरू नहीं हुआ और ना ही
हमास ने पहले इसराईल पर रॉकेट हमले किए। ये मसला बहुत पहले शुरू हुआ है.. जब दूसरा
विश्व युद्ध (अलमी जंग) खत्म हुआ और ब्रिटेन ने फिलिस्तीन की ज़मीन पर यहुदियों के
लिये "यहुदी होमेलैंड" बनाने का एलान किया। और इसके बाद 1948 मे सियासी
यहुदियों (Zionist) के गुंडो ने फिलिस्तीन की बस्तियों को लुटना और कतलेआम मचाना
शुरू कर दिया। इस गुंडगर्दी मे "हग्नाह और इर्गुन" जैसे यहुदी कट्टरपंथी
गिरोह शामिल थे।
इस लुटमार और कतलेआम के नतीजे मे मज़लूम फिलिस्तिनियों को पड़ोसी मुल्कों मे पनाह लेनी पडी जैसे लेबनॉन, जोर्डन और सिरिया। कुछ लोग फिलिस्तीन मे ही मौजूद शान्त इलाको मे जा कर बस गए जैसे गाज़ा और वेस्ट बैंक; जहाँ आज भी बड़ी तादाद मे शरनार्थी कैम्प्स मौजूद है; यहा तक के
70% गाज़ा की अवाम इन्ही बेघर शरणार्थी से भरा हुआ है, जो पहले कभी अपने वतन फिलिस्तीन मे रहते थे, जहा आज इसराईल मौजूद है। इसराईल के 15 मई, 1948 मे वुजूद मे आने के बाद भी, कई फिलिस्तिनी मज़लूमो का अपने गाओं और शहरों से पड़ोसी मुल्कों और शांत इलाकों मे पलायन बहुत दिनो तक जारी रहा। आज भी बेवतन फिलिस्तिनी अपने छिने हुए और उजडे हुए घरों की चबिया सम्भाले हुए उस वक्त का इंतज़ार कर रहे है के वे घर कब वापस लौटेगे।
फिलिस्तीन का बचा हुआ हिस्सा जो की सिर्फ 22% रह गया था जिसमे गाज़ा और वेस्ट बैंक बाकी था, उसपर भी इसराईल ने 1967 की जंग के बाद कब्ज़ा कर लिया जिसे इसराईल ने नाम दिया था "Preventive War". ये सभी शरणार्थी और बेवतन लोग अपने वतन की आज़ादी और वापसी के लिये लड रहे है। ये हक हर उस कौम को हसिल है जिसकी जगह नज़ायाज़ तरीके से छीन ली गई है। लेकिन अफसोस, मज़लूम फिलिस्तिनियों को ये हक भी नहीं दिया गया और पश्चिमी मीडिया ने इन्हे अतंकवादी और दहशतगर्द जैसे नामो से मशहुर कर दिया।
इन मज़लूम बेवतन फिलिस्तिनियों की सिर्फ एक ही मांग है कि उनकी सारी मातृभूमि उन्हे वापस लौटा दी जाए लेकिन उनकी कमज़ोरी और अमेरिका की इसराईल को भरपूर हिमायत के चलते फिलिस्तिनी जनता 22% ज़मीन पर ही राज़ी है; जो इसराईल ने 1967 की जंग मे कब्ज़ा कर ली थी। ये बात 1992 मे ऑस्लो रिकॉर्ड मे घोशित कर दी गई थी जिसके तहत इसराईल और फिलिस्तीन दोनों देश एक दूसरे के साथ रहने पर आमादा थे और 5 साल मे इसे पुरा होना था। लेकिन आज 22 साल के बाद भी ये एक सपना ही है।
मज़लूम फिलिस्तिनी अवाम जिनके पास कोई ताकत नहीं है, उन्हे इस आस पर बातचीत के दौरो से गुज़रा जा रहा है के जल्द ही इसराईल उन्हे उनका हक दे देगा। लेकिन इसकी दूसरी तराफ इसराईल फिलिस्तिनी ज़मीन पर अपने नए सेटलमेंट्स लगतार बना रहा है; जो खुद इसराईल भी मानता है कि फिलिस्तिनी ज़मीन है।
2006 मे फिलिस्तीन मे एक ज़बरदस्त घटना घटी; जिसमे गाज़ा के चुनाओ मे हमास नामी गिरोह को बहुमत मिला। लेकिन इस चुनाव को इसराईल और पस्चिमी देशों ने नकार दिया जैसा के वो हमेशा करते आए है। इन लोगो को इसलामी ममालिक मे लोकतंत्र उस वक्त तक क़बुल नहीं है जब तक इनके पीठठू गद्दी पर नहीं बैठ जाते। हमास कि सरकार को कुछ ही महीनो मे गिरा दिया गया और सन 2007 से गज़ा का घेराओ कर के पहले से घिरी हुई ज़मीन को पुरी दुनिया से अलग कर दिया। ये घेराओ शादीद तर है, जिसमे 18 लाख लोग रोज़ पिस रहे है। ना बराबर से खाना पहुचता है ना पानी.. ना घर बनाने का सामान है ना दवा। गाज़ा आज दुनिया का सबसे बड़ा कैदखाना है जहा बुढे, औरते और बच्चे सिसक रहे है।
गाज़ा से गासीब इसराईल कि ओर जाने वाला हर रॉकेट एक एहतिजाज है जो कि इस गासीब, खुनी और नजयाज़ इसराइली हुकुमत को ललकारता है और याद दिलाता है कि ये ज़मीन फिलिस्तिनियों की है और रहेगी। फिलिस्तिनी कैम्प्स मे रहना पसंद करेगे लेकिन जिल्लत की ज़िंदगी कभी क़बुल नहीं करेगे।
गाज़ा का मसला हमास के रॉकेट्स या सुरंगे नहीं है, हकीक़ी मसला आज़ादी और इज़्ज़त का है। आज इस जंग का हकीक़ी हल ये है के पुरे मुल्क को एक नज़र से देख कर वहा के लोगो से रेफरेंडम के ज़रिये पूछा जाए के वे इसराईल चाहते है या फिलिस्तीन; और फिर आवाम के फैसले पर एक मुल्क बनया जाए जिसमे फिलिस्तिनी अपनी जगहो पर रहेगे और यहुदी भी, और जो भी बाहर से आए हुए लोग है वो अपने अपने मुल्क वापस जाएगे। जिस दिन ये हक फिलिस्तिनियों को मिल जाएगा, ये रॉकेट्स आना बंद हो जाएगे और गाज़ा के लोग भी आम लोगो की तराह सुकुन की ज़िंदगी बसर करने लगेगे।
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