सऊदी अरब के यमन पर हमलों के पहले दौर के खात्मे पर - किसकी जीत?
मार्च 26, 2015; यमनी राष्ट्रपती अब्दुर रब्बू हादी मंसूर के यमन से सऊदी भाग जाने के बाद सऊदी अरब ने 8 अरब मुल्कों के साथ मिलकर यमन पर घातक हमला कर दिया; जिसे "ऑपरेशन डीसीसीव स्ट्रोम" का नाम दिया। इस हमले का उद्देश यमन में अवाम को सबक सीखा कर हौसियो से दूर करना था जिसके लिए सऊदी अरब ने दीगर 8 मुल्को का सहारा लिया।
एक महीने तक बमबारी चलती रही और मज़लूम अवाम मरती रही, जिसमे बच्चे, बूढ़े, औरतें सब शामिल थे। इस दौरान तक़रीबन 2800 लोगो की जाने गई। मारने वाले इस्लाम के मुक़द्दस हरमैन शरीफैन के खादिम, आले सऊद, जो अपने आप को मुस्लमान कहते है। और मरने वाले भी यमनी मुसलमान। बहाना सिर्फ ये की आप हमारे चुने हुए राष्ट्रपती को नहीं मान रहे इसलिए मरने के लिए तैयार हो जाओ।
एक महीने तक चली बमबारी ने यमानियों को और मज़बूत कर दिया। यमन की राजधानी सना में और दूसरी जगहों पर तक़रीबन रोज़ सऊदी मुखालिफ एहतेजाज हो रहे थे। मीडिया दिखा रहा था की जंग सिर्फ हौसियों के खिलाफ है, लेकिन माजरा कुछ और था। यमन में शिया हौसी और सुन्नी शाफ़ई एक हो गए थे। यही यमानियों के लिए सबसे बड़ी कामियाबी बनी।
दुनिया के सभी बड़े मीडिया आउटलेट पूरी ताक़त लगा कर इस बात को साबित करना चाह रहे थे कि यमन में शिया सुन्नी तज़ाद है। लेकिन यमानियों ने साथ आ कर दिखा दिया की लड़ाई फिरके की नहीं है, अपने हक़ की है, अपने देश की और अपनी पहचान की है। 1975 से यमन में अमेरिका और सऊदी की मदद से बना राष्ट्रपती, अली अब्दुल्लाह सालेह राज कर रहा था और अपनी मरज़ी से यमन को चला रहा था। अवाम ने एहतेजाज कर के सालेह को तो 2013 में निकाल बहार किया लेकिन सऊदी और अमेरिका ने उसी के उप राष्ट्रपती, हादी मंसूर को हेड बना दिया।
अवाम ने इस बार पक्का इरादा कर लिया था। सभी यमनी राष्ट्रपती भवन के पास एक बढ़े एहतेजाज के लिए जमा हो गए और एक ऐसी लहर बनी जिसमे हौसियो के लीडर, अब्दुल मालिक अल हौसी, पुरे यमन के लीडर की सूरत में सामने आए और हादी मंसूर की हुकूमत को अपने हाथ में ले लिया। हादी की सरकार सना से ईडन (यमन की दूसरे बड़े शहर) में ट्रांसफर कर दी गई। लेकिन अवाम में जोश इतना था की ईडन में भी हादी को नहीं रहने दिया गया और आखिर हादी मंसूर सऊदी भाग खड़ा हुआ।
सऊदी ने हमला यह बोल कर किया था की उसे यमन में हादी मंसूर को वापस बिठाना है और हौसियो का असर यमानियो में काम करने का था। आज एक महीने के हमलो के बाद, 2800 लोगो की जान लेने के बाद जब हम यमन की ओर नज़र करते है तो यमनी हौसियो से बहोत क़रीब नज़र आते है। हादी मंसूर से शदीद नफरत का माहोल है जिसके चलते हादी मंसूर का फिर से राष्ट्रपती बन पाना नामुमकिन है। और हौसियो की पोजीशन पहले से बहोत ज़्यादा मज़बूत है।
21 अप्रैल, 2015 को सऊदी ने ऑपरेशन डीसीसीव स्ट्रॉम के खात्मे का एलान किया लेकिन उसके साथ ही दूसरा ऑपरेशन शुरू करने ऐलान कर दिया। दूसरे मरहले का नाम रखा गया "रिस्टोरिंग होप" (उम्मीद की बहाली), लेकिन नाम से हटकर दूसरे दिन ही सऊदी ने सना और सा'अदा के नए इलाक़ों में हमले शुरू कर दिए।
बात साफ़ है, सऊदी ने हमले जिस मक़सद से किये है उनमे से एक भी पूरा होता नहीं दिख रहा है। सऊदी अरब भागे हुए राष्ट्रपती को वापस उसकी पोजीशन पर बिठा पाया, ना ही हौसियो को सना और ईडन से बहार कर पाया। इसके साथ ही यमन में अल-क़ायदा को खुली छूट मिल गई की वो जेलों से अपने आदमियो को निकालने में कामियाब हो गए और आज खुद सऊदी अरब और यमन दोनों के लिए खतरा बन गए है।
इन सब चीज़ो के साथ यमानियों ने अपना भरोसा हौसियों पर बाक़ी रखा और अपने इज़्ज़त-ओ-वक़ार के लिए लड़ते रहे। हौसी और शाफ़ई एक साथ कंधे से कंधे मिला कर लड़ते दिखाई दिए।
इन सब चीज़ो को देख कर पता चलता है की यमन का मुस्तक़बिल (भविष्य) रोशन और नुमाया है। सऊदी अरब और अमेरिका कभी अपने मक़सद कामियाब नहीं होगे। लेकिन यह बात भी ध्यान में रखना चाहिए कि आगे की राह आसान नहीं है और यमानियों को क़ुरबानी के लिए तैयार रहना होगा। ज़ालिम दिखा रहा है की वह बहोत मज़बूत है, लेकिन मज़लूम जब हक़ की राह पर मज़बूती से खड़े होते है तो ज़ालिम उनका कुछ नहीं बिगाड़ पता।
मार्च 26, 2015; यमनी राष्ट्रपती अब्दुर रब्बू हादी मंसूर के यमन से सऊदी भाग जाने के बाद सऊदी अरब ने 8 अरब मुल्कों के साथ मिलकर यमन पर घातक हमला कर दिया; जिसे "ऑपरेशन डीसीसीव स्ट्रोम" का नाम दिया। इस हमले का उद्देश यमन में अवाम को सबक सीखा कर हौसियो से दूर करना था जिसके लिए सऊदी अरब ने दीगर 8 मुल्को का सहारा लिया।
एक महीने तक बमबारी चलती रही और मज़लूम अवाम मरती रही, जिसमे बच्चे, बूढ़े, औरतें सब शामिल थे। इस दौरान तक़रीबन 2800 लोगो की जाने गई। मारने वाले इस्लाम के मुक़द्दस हरमैन शरीफैन के खादिम, आले सऊद, जो अपने आप को मुस्लमान कहते है। और मरने वाले भी यमनी मुसलमान। बहाना सिर्फ ये की आप हमारे चुने हुए राष्ट्रपती को नहीं मान रहे इसलिए मरने के लिए तैयार हो जाओ।
एक महीने तक चली बमबारी ने यमानियों को और मज़बूत कर दिया। यमन की राजधानी सना में और दूसरी जगहों पर तक़रीबन रोज़ सऊदी मुखालिफ एहतेजाज हो रहे थे। मीडिया दिखा रहा था की जंग सिर्फ हौसियों के खिलाफ है, लेकिन माजरा कुछ और था। यमन में शिया हौसी और सुन्नी शाफ़ई एक हो गए थे। यही यमानियों के लिए सबसे बड़ी कामियाबी बनी।
दुनिया के सभी बड़े मीडिया आउटलेट पूरी ताक़त लगा कर इस बात को साबित करना चाह रहे थे कि यमन में शिया सुन्नी तज़ाद है। लेकिन यमानियों ने साथ आ कर दिखा दिया की लड़ाई फिरके की नहीं है, अपने हक़ की है, अपने देश की और अपनी पहचान की है। 1975 से यमन में अमेरिका और सऊदी की मदद से बना राष्ट्रपती, अली अब्दुल्लाह सालेह राज कर रहा था और अपनी मरज़ी से यमन को चला रहा था। अवाम ने एहतेजाज कर के सालेह को तो 2013 में निकाल बहार किया लेकिन सऊदी और अमेरिका ने उसी के उप राष्ट्रपती, हादी मंसूर को हेड बना दिया।
अवाम ने इस बार पक्का इरादा कर लिया था। सभी यमनी राष्ट्रपती भवन के पास एक बढ़े एहतेजाज के लिए जमा हो गए और एक ऐसी लहर बनी जिसमे हौसियो के लीडर, अब्दुल मालिक अल हौसी, पुरे यमन के लीडर की सूरत में सामने आए और हादी मंसूर की हुकूमत को अपने हाथ में ले लिया। हादी की सरकार सना से ईडन (यमन की दूसरे बड़े शहर) में ट्रांसफर कर दी गई। लेकिन अवाम में जोश इतना था की ईडन में भी हादी को नहीं रहने दिया गया और आखिर हादी मंसूर सऊदी भाग खड़ा हुआ।
सऊदी ने हमला यह बोल कर किया था की उसे यमन में हादी मंसूर को वापस बिठाना है और हौसियो का असर यमानियो में काम करने का था। आज एक महीने के हमलो के बाद, 2800 लोगो की जान लेने के बाद जब हम यमन की ओर नज़र करते है तो यमनी हौसियो से बहोत क़रीब नज़र आते है। हादी मंसूर से शदीद नफरत का माहोल है जिसके चलते हादी मंसूर का फिर से राष्ट्रपती बन पाना नामुमकिन है। और हौसियो की पोजीशन पहले से बहोत ज़्यादा मज़बूत है।
21 अप्रैल, 2015 को सऊदी ने ऑपरेशन डीसीसीव स्ट्रॉम के खात्मे का एलान किया लेकिन उसके साथ ही दूसरा ऑपरेशन शुरू करने ऐलान कर दिया। दूसरे मरहले का नाम रखा गया "रिस्टोरिंग होप" (उम्मीद की बहाली), लेकिन नाम से हटकर दूसरे दिन ही सऊदी ने सना और सा'अदा के नए इलाक़ों में हमले शुरू कर दिए।
बात साफ़ है, सऊदी ने हमले जिस मक़सद से किये है उनमे से एक भी पूरा होता नहीं दिख रहा है। सऊदी अरब भागे हुए राष्ट्रपती को वापस उसकी पोजीशन पर बिठा पाया, ना ही हौसियो को सना और ईडन से बहार कर पाया। इसके साथ ही यमन में अल-क़ायदा को खुली छूट मिल गई की वो जेलों से अपने आदमियो को निकालने में कामियाब हो गए और आज खुद सऊदी अरब और यमन दोनों के लिए खतरा बन गए है।
इन सब चीज़ो के साथ यमानियों ने अपना भरोसा हौसियों पर बाक़ी रखा और अपने इज़्ज़त-ओ-वक़ार के लिए लड़ते रहे। हौसी और शाफ़ई एक साथ कंधे से कंधे मिला कर लड़ते दिखाई दिए।
इन सब चीज़ो को देख कर पता चलता है की यमन का मुस्तक़बिल (भविष्य) रोशन और नुमाया है। सऊदी अरब और अमेरिका कभी अपने मक़सद कामियाब नहीं होगे। लेकिन यह बात भी ध्यान में रखना चाहिए कि आगे की राह आसान नहीं है और यमानियों को क़ुरबानी के लिए तैयार रहना होगा। ज़ालिम दिखा रहा है की वह बहोत मज़बूत है, लेकिन मज़लूम जब हक़ की राह पर मज़बूती से खड़े होते है तो ज़ालिम उनका कुछ नहीं बिगाड़ पता।
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