20वी सदी आने के साथ ही
इंसान डेवलपमेंट और तरक्की की राहो पर आगे बढ़ता दिखाई देने लगा. हर तरफ मशीन और
फैक्ट्रीज नज़र आने लगी और मानो जैसे दुनिया में हर तरह का सामान बनाने की होड़ सी
लग गई. बाजारों में नई चीजें आने लगी और इंसान जैसे आसमानों में उड़ने लगा.
इस तरक्क़ी के साथ साथ कई और चीज़े इंसानों को तोहफे में मिली, और वो थी जंग, लड़ाईयां और हथियारों की होड़. इस जंग
में हर वो इंसान शामिल था जो अपने आप को आराम में देखना पसंद करता था. जंग तो
देखने में यूरोप से शुरू हुई और धीरे धीरे पूरी दुनिया में फ़ैल गई. लेकिन जापान से
लेकर अमेरीका तक रहने वाले सभी लोग इस जंग का हिस्सा बन गए. यहाँ तक की अफ्रीका के
जंगलो में रहने वालो को भी इस जंग का खामियाजा भुगतना पडा.
इस दौरान दो बड़ी जंगे लड़ी
गई जिन्हें वर्ल्ड वार्स के नाम से जाना जाता है जिसमे करीब करीब 5 करोड़ लोगो की
जाने गई और ना जाने कितने ही लोग घायल और अपाहिज हुए. इन जंगो की वजह सिर्फ एक ही
चीज़ थी और वो है दुनिया की लालच और ज्यादा से ज्यादा इलाके को अपने कब्ज़े में करने
की होड़. विश्व युद्ध ख़त्म होने के बाद "सर्द जंग" शुरू होती है जिसमे मशरिक़ (रूस) और
मग़रिब (अमरीका) एक दुसरे के खिलाफ तरह तरह के हथियार बनाने लगते है, जिसमे
नुक्लेअर वेपन्स का भी शुमार था.
रूस अपना दबाव बढाने की होड़
में अफ़ग़ानिस्तान और दुसरे मुल्को पर कब्ज़ा करने की फिराक़ में था. साथ ही बहुत
से मुल्क रूस के नज़रिये को अपना कर खुद को बासी (कम्युनिस्ट) घोषित कर चुके थे,
जिनमे इराक और सीरिया शामील थे. दूसरी तरफ अमेरीका अपने कब्ज़े और पकड़ को बनाने के
लिए कई मुल्को में सिविल वार करवा कर वहा बीचबचाव करने के बहाने अन्दर घुस रहा था,
जिसमे कोरिया और विएतनाम शामिल है.
इन्ही अफरा तफरी और जंगो के
बिच सन 1979 में ईरान नाम के एक देश से एक आवाज़ गूंजती है: “ला शरकिया, ला गरबिया..
इस्लामिया इस्लामिया” (ना मशरिक बड़ा है, ना मगरिब बड़ा है.. सिर्फ और सिर्फ इस्लाम
सबसे बड़ा है). ये सदा एक 80 साल के बूढ़े शख्स ने लगाई थी जिसे आज दुनिया “इमाम
खोमीनी” के नाम से जानती है.
ज़माने के ऐसे हालात में जब
इंसानियत रहम और अद्ल के लिए तरस रही थी, इंसान मानो दरिंदो की मानिंद एक दुसरे के
खून के प्यासे थे, ना किसी पर रहम खा रहा था ना ही किसी से कोई उम्मीद बची थी..
ऐसे हालात में अद्ल और अम्न की चिंगारी एक ऐसे इलाके से जली जिसे सरज़मीने “इरान”
कहा जाता है. इस आवाज़ में ऐसी खनक थी की बातिल के पैरो तले से ज़मीन खिसकने लगी और
आस खोते हक को मानो एक नई जान मिलने लगी.
1979 में इमाम खुमैनी (अ.र)
की सरपरस्ती में ईरान में एक इस्लामी इन्केलाब आया जिसकी वजह से वह पर 2500 साल
पुरानी शाह की हुकूमत गिर गई और एक इस्लामी जम्हूरी एक आगाज़ हुआ. इस इन्केलाब की
सब से अहम् बात ये है की यह इन्केलाब लोगो को झूट, ज़िल्लत, ज़ुल्म और नाइंसाफी से
निजात दिला कर हक, इज्ज़त, अद्ल और इन्साफ की राह पर आगे बढाता है.
जहा एक तरफ
दुनिया की बढ़ी ताक़तें लोगो को ग़ुलाम बनाकर उनका खून चूसने को अपना हक समझती है,
वही इस्लामी इन्केलाब इन कमज़ोर लोगो को अपना हक वापस कर के उन्हें इस मकाम पर
पहुचता है की वो अम्न और चैन की ज़िन्दगी जीते हुए अपने खालिक ओ मालिक तक पहुच सके.
इस्लामी
इन्केलाब की वजह से ईरान पर बहोत सी पाबंदियां डाली गई लेकिन इमाम खुमैनी की
लीडरशिप में ईरान की अवाम ने पाबंदियां कबुल कर ली लेकिन ज़ालिम ताक़तों के सामने
झुकना कबुल नहीं किया. ईरान के ज़ालिम बादशाह, रेज़ा शाह, के ज़माने में यही अवाम
मजलूम बनी बैठी थी और ईरान अमेरीका की कठपुतली था. इस्लामी इन्केलाब ने ईरानी अवाम
को अपनी इज्ज़तो वक़ार वापस करते हुए इसे एक बा-इज्ज़त कौम बना दिया जिसकी मिसाल आज
दुनिया में नहीं मिलती.
इस्लामी
इन्केलाब ने न सिर्फ ईरान को बल्कि पूरी शिअत को एक ऐसी इज्ज़त से नवाज़ा है जो
दुनिया के सामने एक नमूना है. सिर्फ मुसलमान ही नहीं बल्कि हर इंसान आज ईरान को एक
मिसाली मुल्क की मानिंद देखता है.
अगर दुनिया में कहीं भी ज़ुल्म होता है और मजलूम
का अगर कोई साथ नहीं देता, उस मजलूम को ज़रूर ये आस रहती है की ईरान ज़रूर हमारी मदद
करेगा या हमारे हक में आवाज़ उठाएगा. और इन मज़लूमो की उम्मीद को पूरा करते हुए और
अपने पहले इमाम, इमाम अली (अ) की वसीयत, जिसमे इमाम (अ) ने कहा है की हमेशा मजलूम
के साथ रहो और ज़ालिम के खिलाफ, इस पर अमल करते हुए ईरान ने हर मजलूम का साथ दिया
है – चाहे वो शिया हो, या सुन्नी, मुस्लमान हो ग़ैर मुस्लिम. हमारे सामने कई मिसाले
है जैसे फिलिस्तीन, बर्मा के रोहिंग्या मुसलमानों का मसला, पाकिस्तान के हालात,
सीरिया और यमन के हालात, अमेरीका में हो रहे नस्ली हमले, वगैरह.
यही
वजह है की आज मगरीबी मुल्क मिल कर ईरान को नुकसान पहुचने की फिराक़ में है. यह लोग अस्ल
में ईरान के नहीं बल्कि इस्लामी निजाम के दुश्मन है. यह वह निजाम है जिसे इमाम
खुमैनी ने ईरान में नाफ़िज़ कर के ईरान को जम्हूरी-ए-इस्लामी-ए-ईरान (इस्लामिक
रिपब्लिक ऑफ़ ईरान) बनाया है.
हम
इमाम खुमैनी की २६वीं यौमे रेहलत पर खुदा से दुआ करते है की इन्केलाब ए इस्लामी को
कायम और दायम रखते हुए इसे अपने मकसद तक पंहुचा, इस इन्केलाब को इन्केलाब ए इमाम
मेहदी (अ) से जल्द अज जल्द मिला दे और इमाम खुमैनी (अ.र) के दरजात को बुलंद फरमा.
इलाही
आमीन
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