Special Pages

Friday, 24 July 2015

सय्यद हसन नसरल्लाह की यौमे क़ुद्स की स्पीच के इम्पोर्टेन्ट पॉइंट्स

  • इमाम खुमैनी ने माहे रमज़ान के आखरी जुमे के रोज़ को फिलिस्तीनी मसले से मंसूब किया ताकि ये मसला जिंदा रहे.
  • यमन में सऊदी हमलो के बावजूद लोग यौमे क़ुद्स के रोज़ फिलिस्तीन की हिमायत में दसियों हज़ार की तादाद में अपने घरो से बाहर आए
  • यमन की ही तर्ज़ पर बहरैन को भी आलमी सतह पर अकेला छोड़ दिया गया है, लेकिन फिर भी वहा के लोगो ने यौमे क़ुद्स पर रैली निकाली
  • मिडिल ईस्ट में इतने ख़राब हालात के बावजूद इतने लाखो लोगो का अपने घरो से बाहर आना लोगो में एक उम्मीद को दिखा रहा है.
  • इसरायली अफसरान ने एक मीटिंग बुलाई थी, जिसके खात्मे पर उन्होंने से एनालाइज किया के 150 करोड़ मुसलमानों से उन्हें कोई खतरा नहीं है (मज़ाकिया जुमला)
  • जो कुछ आज हमारे अतराफ में हो रहा है, इजराइल को इसका बहोत बड़ा फाएदा है
  • सीरिया के आज के हालात इजराइल को मदद करते है; क्युकी इजराइल सीरिया के गोलान की पहाड़ियों को सीरिया से जायज़ तरीक़े से छिनना चाहता है.

Sayed Hasan Nasrullah ki Quds Rally ki speech - 2015

Sayed Hasan Nasrallah ki Yaume Quds ki speech ke important points



  • Imam Khomeini ne maahe Ramzaan ke aakhri jume ke roz ko Filistini masle se mansub kiya taaki ye masla zinda rahe
  • Yemen me Saudi hamlo ke bawajood log Yaume Quds ke roz Filistin ki himayat me dasiyo hazar ki tadaad me apne gharo se bahar aae
  • Yaman ki hi tarz par Bahrain ko bhi aalami satah par akela chod diya gaya hai, lekin phir bhi woaha ke logo ne Yaume Quds par ralliya nikaali.
  • Middle East me itne kharab halaat ke bawajood itne lakho logo ka apne gharo se bahar aana logo me ek umeed ko dikha raha hai

Ayatullah Murtuza Mutahhari ka Filistin ke mauzu par jalali khutba





"शर्म आनी चाहिए हमें अपने आपको मुसलमान कहते हुए।


शर्म आनी चाहिए अपने आपको शिया ए अली इब्न अबी तालिब(अ) कहते हुए।"

आयतुल्लाह मुतह्हरी का ऐतिहासिक और सबसे जलाली ख़ुत्बा फ़िलिस्तीन के मुद्दे पर:

  • अगर पैग़म्बर-ए-इस्लाम(स) आज मौजूद होते तो क्या करते?
  • कौनसा मुद्दा उनके ज़ेहन में हमेशा होता?
  • अल्लाह की क़सम हम ज़िम्मेदार हैं आज इस संकट में।
  • अल्लाह की क़सम हमारे ऊपर ज़िम्मेदारी है।
  • अल्लाह की क़सम हम जहालत में हैं।
  • अल्लाह की क़सम यही मुद्दा आज पैग़म्बर-ए-अक्रम(स) का दिल तोड़ देता।

Tuesday, 21 July 2015

Ayatullah Khamenei ka Eid-ul-Fitr ka khutba




Rehbar-e-Moazzam Ayatullah Syed Ali Khamenei ke Eid-ul-Fitr ke khutbe ke important points:


  • Marg bar America, Marg bar Israel ke naaro ne hamare mulk ka mahol badla hai, ye sirf Tehran ya bade shahro ki baat nahi hai, balki pure Iran ka mahol inhi sheaar ne tabdeel kiya hai.

  • Nuclear deal ki kuch baate: sabse pehle mai mulk ke President aur Nuclear deal ke ahalkaar, ho in taweel muzakeraat ka hissa rahe hai, ki mulk ke liye jaddo-jahad ko sarahta hu.

  • Jo baate JCPOA ke tahat ek legal framework ke tahat tai paai hai, asl me unhe jaisa tai paya hai amal me lana chahiye. Agar ye framework dono partiyo ki taraf se qabul kiya jae ya qabul na kiya jaae, ham kisi bhi qimat par khudai madad se is deal ke zariye hamari qaum ko nuksaan nahi pahuchne dege.

अयातुल्लाह खामेनेई का ईद-उल-फ़ित्र का खुतबा




रहबर-ए-मोअज्ज़म अयातुल्लाह सय्यद अली खामेनेई के ईद-उल-फ़ित्र के खुतबे के इम्पोर्टेन्ट पॉइंट्स:


  • मर्ग बर अमेरीका, मर्ग बर इजराइल के नारों ने हमारे मुल्क का माहोल बदला है, ये सिर्फ तेहरान या बड़े शहरों की बात नहीं है, बल्कि पुरे ईरान का माहोल इन्ही शेआर ने तब्दील किया है.

  • नुक्लेअर डील की कुछ बाते: सबसे पहले मैं मुल्क के प्रेसिडेंट और नुक्लेअर डील के अहलकार, जो इन तवील मुज़केरात का हिस्सा रहे है, की मुल्क के लिए जद्दोजहद को सराहता हु

  • जो बाते JCPOA के तहत एक लीगल फ्रेमवर्क के तहत तय पाई है, अस्ल में उन्हें जैसा तय पाया है होना चाहिए. अगर ये फ्रेमवर्क दोनों पार्टियों की तरफ से कुबूल किया जाए या कुबूल ना किया जाए, हम किसी भी कीमत पर खुदाई मदद से इस डील के ज़रिये हमारी कौम को नुकसान नहीं पहुचने देगे.

  • हमारी दिफई कुव्वत और मुल्क की सिक्यूरिटी अल्लाह की मदद से होती रहेगी और ईरान कभी अपने दुश्मन की ज्यादतियों के सामने घुटने नहीं टेकेंगा.

  • यह डील, अगर कुबूल की जाए या कुबूल ना की जाए, हम अपने इलाके के दोस्तों को कभी अकेला नहीं छोड़ेगे. हमेशा मजलूम फिलिस्तीन, यमन, सीरिया, बहरैन की मदद जारी रहेगी, खास कर लेबनान और फिलितिने के मुखलिस मुजाहेदीन की.

  • हाल में जारी मुज़केरात के चलते और जो डील तय पाई है उसके तहत, ज़ालिम अमेरिकी निजाम के मुक़ाबिल हमारी पालिसीयों में कोई फ़र्क नहीं आएगा. इस इलाक़े में अमेरिकी पालिसी में और इस्लामि जम्हुरिये ईरान की की पॉलिसियो में 180 डिग्री का फ़र्क पाया जाता है.

  • जैसा की पहले बताया जा चूका, हमने अमेरीका से किसी भी इंटरनेशनल, इलाकाई और बाईलेटरल मुद्दों पर बात नहीं की है. हालांकि हमारी तरफ से कुछ ज़रूरी मुद्दों पर कभी कभी गुफ्तगू हुई है जैसे नुक्लेअर डील.

  • अमेरीका लेबनान के मोक़वामती कौमी फ़ौज हिजबुल्लाह को आतंकवादी गिरोह जानता है; जबकि दूसरी तरफ एक हकीकी आतंकी, बच्चो की कातिल, इसरायली रेजीम को जायज़ करार देता है. हम ऐसी पॉलिसियों से कैसे राज़ी हो सकते है?

  • हाल में चल रहे नुक्लेअर मुज़केरात के चलते, जो के हमारे घरेलु मुद्दों की वजह से है, अमेरीका समझ रहा है की उसने ईरान को अटोमी हथियार बनाने से रोक दिया है.

  • अटोमी हथियारों का नुक्लेअर डील की मुज़केरात से से कोई लेना देना नहीं है. कुरान और इस्लामी शरीअत के रौशनी में, हम ये मानते है की अटोमी हथियार बनाना, उसे जमा करना और उसका इस्तेमाल एक नाजायज़ और हराम अमल है.

  • वह लोग दावा कर रहे है की उन्होंने ईरान की अटोमी इंडस्ट्री को झुका दिया और बंद कर दिया. ईरान का झुकना दिन में सपने देखने जैसा है. इस्लामी इन्केलाब के बाद से आज तक 5 अमेरिकी प्रेसिडेंट्स आए, कुछ मर गए और कुछ तारीख में गायब हो गए. सभी येही सोच रहे थे की ईरान को झुका देंगे. आज तुम लोग भी उसी गलती को दोहरा रहे हो.

  • मैं अमेरिकी अफसरान को एक नसीहत करना चाहता हु; आज, आप लोग अपनी पुरानी गलतियों का एतेराफ कर रहे हो जो तुमने ईरान के खिलाफ कई साल पहले की थी. अभी भी वक़्त है, जाग जाओ और जान लो की इस इलाके में तुम लोग फिर से बहोत बड़ी गलतियाँ कर रहे हो.

  • 12 साल के लम्बे अरसे की बातचीत और बारगेनिंग के ज़रिये ईरान ने दुनिया के 6 बड़े मुल्को को ये मानने पर मजबूर कर दिया की कई हज़ार अटोमी सेंट्रीफ्यूज और नुक्लेअर रिसर्च ईरान का बुनियादी हक है.

  • उन्होंने इसी बात पर कई साल गुज़र दिए की नुक्लेअर इंडस्ट्री और रिसर्च को ईरान में ना होने दिया जाए; लेकिन आखिर उन्होंने इस बात को माना, लिखा और साइन भी किया. इसका मतलब ये है की ईरान को हाकिमियत मिली.

  • अमेरिकी प्रेसिडेंट ने कहा है है की वो ईरानी मिलिट्री को आसानी से हरा सकते है. ये बात साबित है की हम जंग नहीं चाहते और ना ही जंग की इब्तिदा (स्टार्ट) करते है. लेकिन अगर हम पर जंग थोपी जाएगी तो लोग ये देखेंगे की जिसकी शर्मनाक हार होगी वो हकिक़तन ज़ालिम और जाबिर अमेरीका की होगी.

  • सूरा नस्र: जब अल्लाह की मदद आ जाए और कमियाबी नसीब हो. और तुम लोगो को देखो की वे अल्लाह के दीन में गिरोह के गिरोह दाखिल हो रहे हो. तो अपने रब की तारीफ़ करो और उसकी बारगाह में तौबा करो. बेशक वह बड़ा तौबा कुबूल करने वाला है.

Thursday, 16 July 2015

खेल के मैदान से सियासत के मैदान तक; हर बाज़ी ईरान की




21, जून 1998 किसी को याद हो या न याद हो, पूरी दुनिया पर अपनी चौधराहट कायम करने वाले अमेरीका को ज़रूर याद होगा, जब फ्रांस में होने वाले फुटबॉल के वर्ल्ड कप में दुनिया के करोडो लोगो ने अपने घर के टीवी स्क्रीन पे अमेरीका के ग़रूर का नशा उतरते देखा. ईरान के फुटबॉल प्लेयर हामिद एश्तेली ने 20 वे मिनट में अमेरिका के रुखसार पर जो ज़ोरदार किक लगाई इस पर ईरान फांस झूम ही रहे थे की ईरान के जियाले महदवी क्यानामी ने 84 वे मिनट में दूसरा गोआल दाग़ कर पुरे अमेरीका को ईरान से तारीखी शिकस्त खाने में दागदार बना दिया. ये वो पहला मैच था जहाँ मैंने महसूस किया के इंडिया और पाकिस्तान के मैच से कहीं ज्यादा दीवानगी और दिलचस्पी कही और भी मौजूद है.

मैच ख़त्म हो गया लेकिन उसकी लज्ज़त अभी तक बाकी है. पहली बार ऐसा लगा के चुंटी जब हाथी की सूंड में घुस जाए तो कई टन वज़नी हाथी अपनी लम्बी सूंड लहराने के सिवा कुछ नहीं कर पाता, और न चीखने से काम बनता है न चिल्लाने से.

यूँ तो अलग अलग मीडिया सौर्सस से, खास कर हिन्दुस्तानी मीडिया की म्हणत से लोगो के ज़हन में अमेरीका की एक सुपर पॉवर की हैसियत बनी हुई थी, लेकिन इस तस्वीर को परा परा होते हुए पहली बार देखा, हु भी ईरान के हाथो.

अपनी पढाई के दौरान जब ईरान के इन्केलाब की तारीख पढ़ी तो कई बार इस सुपर पॉवर हुकूमत की ईरान के मुकाबले शिकास्त से रूबरू हुआ, कहीं तबस का वकेया तो कहीं अमेरिकन एम्बेसी पर ईरानी इनेकेलाबी जवानों का क़ब्ज़ा और इन्हें रिहा करने में सुपर पॉवर अमेरीका की नाकामी तो कहीं सद्दाम हुसैन डिक्टेटर की खुल कर मदद करने में अमेरीका की शिकस्त और जिमी कार्टर का इस्तीफा, तो कही ईरान के 1988 के सदारती इलेक्शन में अमेरीका के लाखो डॉलर्स की बर्बादी, कही टेररिज्म की आग में ईरान को जलने की कोशिश में टेररिस्ट ग्रुप जुनदुल्लाह के हेड अब्दुल मालिक रेगी जैसे खूखार दरिंदो की अमेरीका की जानिब से खुली हिमायत और ईरान का उड़ते जहाज़ से उसे उतार कर अमेरीका को ज़ोरदार तमाचा, तो कही एडवांस टेक्नोलॉजी से लैस अमेरिकी ड्रोन पर ईरानी स्पेशलिस्ट का कब्ज़ा और नासा में बैठे बेहरुपियो के माथे पर हार के पसीने के गर्म कतरे. ये सब तारीखे इन्केलाबे ईरान का हिस्सा है.

जब से अपने अतराफ में रुनुमा होने वाले मसाएल की सुध बुध आई है, अमेरीका को ईरान के हाथो हमेशा शिकस्त खाते देखा और ये शिकस्त किसी एक मैदान में नहीं, हर मैदान में नज़र आती है. इसी 2015 को ले ले, लोस अन्ज्लेस का खचा खच भरा स्टेडियम वर्ल्ड रेसलिंग चैंपियनशिप की मैच हो रहे थे. ईरान के मुकाबले में रूस और टर्की मु तकते रह जाते है. “मिसम मुस्तफा जुकार” और “हसन यजदानी” के दो के आगे ना “मिट काफ” की चलती है न “ज़ुच्रे” की, नतीजा ईरान का तिरंगा सब से ऊपर जिस पर अल्लाह लिखा है. अल्लाहो अकबर को पूरी दुनिया पर फ़ैलाने का अंदाज़ कोई ईरानियो से सीखे.

इस के कुछ ही दिन बाद वॉली बाल की लीग का तेहरान में खेला गया मैच भी कुछ कम हैरतंगेज़ नहीं था. जहाँ इफ्तार के वक़्त करोडो नाज़ेरिन ने देखा के अज़ान हो रही है और इसके बाद स्टेडियम में मौजूद लोग इफ्तार में मशगूल हो जाते है, फिर मैच शुरू होता है. 12 हज़ार लोगो की कैपिसिटी वाला स्टेडियम “ईरान – ईरान” के नारों से गूंजने लगता है. एक के बाद एक तीनो सेट ईरान के कब्जे में; ईरान 3 – अमेरीका 0.

सर उठाती हुई ताक़ते सर उठाई हुई दुनिया की सुपर पॉवर ताक़त हार गई...

ईरान ने एक बार फिर कमाल किया लेकिन मीडिया ने इस तारीखी जीत को ऐसे भुला दिया जैसे ईरान और अमेरीका के दरमियाँ वॉली बाल का मैच ही न हुआ हो. वॉली बाल, रेसलिंग और फुटबॉल तो खेल के मैदान की बातें है लेकिन आज ऑस्ट्रिया के विएना में जो हुआ, उसे क्या नाम दिया जाए?

सियासत के मैदान से 6 ताक़तवर ममालिक अमेरिकी सर्बरही में और ईरान तनहा पर्दा-ए-गैब में पोशीदा अपने इमाम (अ) की दुओं के साए में.

नतीजा: दुनिया ने देखा के 12 साल की लम्बी बातचीत के बाद नुक्लेअर टेक्नोलॉजी के ईरानी हक को दुनिया ने तस्लीम किया और डिस्कशन के बाद नुक्लेअर डील अमल में आई. यूरोपियन यूनियन की फॉरेन पालिसी लीड ने खुले लफ्जों में एलान कर दिया के “यह एक तारीखी दिन है, क्युंके आलमी ताक़तों ने ईरान के साथ बाई-लेटरल रिलेशन को नया रुख देने पर इत्तेफाक कर लिया है.”

फेडेरिका मोघेरिनी का ये एलान सिर्फ एक हिस्टोरिक अग्रीमेंट के अमल में आने का एलान नहीं बल्कि इस बार सियासत के मैदान में अमेरीका को छोड़ कर ईरान का हाथ उठा कर एक जीत का एलान है के जिस ने खेल से लेकर मिलिट्री, इकनोमिक और सोशल मैदानों में दुनिया के सुपर पॉवर को घुटने टेकने पर मजबूर किया था, आज वोही फिर बाज़ी मार ले गया.

तहरीर: सय्यद नजीबुल हसन जैदी

Wednesday, 15 July 2015

Khel ke maindan se syasat ke maidan tak; har bazi Iran ki




21 June, 1998  kisi ko yaad ho ya na yaad ho, puri duniya par apni chaudhrahat qayam karne wale America ko zarur yaad hoga, jab France me hone wale Football ke world cup me duniya ke karodo logo ne apne ghar ke TV screen pe America ke gharur ka nasha utarte dekha. Iran ke football player Hamid Eshtely ne 20th minute me America ke rukhsaar par jo zordaar kick lagayi is par Irani fans jhum hi rahe the ke Mahdavi Kyanami ne Iran ke jiyale ne 84th minute me dusra goal daagh kar pure America ko Iran se tarikhi shikast khane me daaghdaar bana diya. Ye who pehla match tha jahan maine mahsus kiya ke India aur Pakistan ke match se kahin zyada deewangi aur dilchaspi kahi aur bhi maujood hai.

Match khatm ho gaya lekin uski lazzat abhi tak baqi hai. Pehli baar aisa laga ke chunti jab hathi ki  sund me ghus jaae to kai ton wazani hathi apni lambi sund lahrane ke siwa kuch nahi kar paata, aur na cheekhne se kaam banta hai na chillane se.

Yu to alag alag media sources se, khas kar Hindustani media ki mehnat se logo ke zahan me America ki ek Super Power ki haisiyat bani hui thi lekin is tasweer ko para para hote hue pehli baar dekha who bhi Iran ke hatho. 

Apni padhai dauran jab Iran ke inqelaab ki tarikh padhi to kai baar is Super Power hukumat ki Iran ke muqable shikast se rubaru hua kahin Tabas ka waqea to kahin American Embassy par Irani inqelabi jawano ka qabza aur inhe riha karne me Super Power America ki nakami to kahin Saddam Hussain Dictator ki khul kar madad karne me America ki shikast aur Jimmy Carter ka resignation, to kahin Iran ke 1988 ke Presidential Election me America ke lakho dollars ki barbaadi, kahin terrorism ki aag me Iran ko jalane ki koshish me terrorist group Jundullah ke head Abdul Malik Regi jaise khunkhar darindo ki America ki janib se khuli himayat aur Iran ka udte jahaz se use utaar kar America ko zordaar tamacha, to kahin advance technology se lais Americi drone par Irani specialist ka qabza aur Nasa me baithe behrupiyon ke maathe par haar ke pasine ke garm qatre. Ye sab tarikhe inqelaabe Iran ka hissa hai. 

Jab se apne atraaf me runuma hone wale masael ki sudh budh aai hai, America ko Iran ke hatho hamesha shikast khate dekha aur ye shikast kisi ek maidaan me nahi, har maidan me nazar aati hai. Isi 2015 ko le le, Los Angles ka khacha khach bhara stadium World Wrestling Championship Russia aur Turkey muh takte reh jaate hai. “Misam Mustafa Jukaar” aur “Hasan Yazdani” ke dao kea age na “Mit Calf” ki chalti hai na “Zuchre” ki, natija Iran ka tiranga sab se upar jis par Allah likha hai, Allaho Akbar ko puri duniya par failane ka andaza koi Iraniyo se sikhe. 

Is ke kuch hi din baad Volley Ball ki league ka Tehran me khela gaya match bhi kuch kam hairatangez nahi tha jahan iftaar ke waqt karodo nazerin ne dekha ke azaan ho rahi hai aur iske baad stadium me maujood log iftaar me mashghool ho jaate hai, phir match ka start hota hai. 12 hazaar logo ki capacity wala stadium “Iran Iran” ke naro se goonjne lagta hai. Ek ke baad ek digar teeno set Iran ke qabze me Iran 3 – America 0.

Sar uthati hui taqate sar uthai hui duniya ki Super Power taqat haar gai..
Iran ne ek baar phir kamaal kiya lekin media ne is tarikhi jeet ko aise bhula diya jaise Iran aur America ke darmiyan Volley Ball ka match hi na hua ho. Volley Ball, Wrestling aur Football to khel ke maidan ki baaten hai lekin aaj Austria ke Vienna me jo hua, use kya naam diya jae? 

Siyasat ke maidan me 6 taqatwar mamalik Americi sarbarahi me aur Iran tanha pardae ghaib me poshida apne Imam (ATFS) ki duao ke saae me.

Natija: Duniya ne dekha ke 12 saal ki lambi baatchit ke baad Nuclear Technology ke Irani haq ko duniya ne tasleem kiya aur discussions ke baad Nuclear Deal amal me aayi aur European Union ki Foreign policy ki lead ne khule lafzo me elan kar diya ke “Ye ek tarikhi din hai kyunke aalami taqaton ne Iran ke sath bilateral relations ko naya rukh dene par ittefaaq kar liya hai”.

Federica Mogherini ka ye elaan sirf ek historic agreement ke amal me aane ka elan nahi balki is baar siyasat ke maidan me America ko chod kar Iran ka hath utha kar ek jeet ka elan hai ke jis ne khel se lekar military, economic aur social maidano me duniya ke Super Power ko ghutne tekne par majboor kiya tha, aaj wohi phir baazi maar le gaya.

Tahrir: Syed Najeebul Hasan Zaidi

Wednesday, 1 July 2015

Aalami Siyasat – Israel ke Haami aur Mukhalif me Jang




Aaj duniya tezi se badal rahi hai aur is tezi me roz ba roz pechidgi aa rahi hai. Is pechidgi ki had itni uchai par hai ki aam insaan ke liye ise samajhna aasan nahi. Sirf hindustaan ke halaat hi nahi balki puri duniya ke halaat ek jaise hai. Har taraf zulm aur jaur fail raha hai aur insaniyat amn-o-chain ke liye taras rahi hai.

Agar duniya ki taraf nazar kare to halaat bad se badtar dikhai dete hai. Khususan musalmano aur muslim mamalik ke halaat kuch zyada hi taklifdeh hai. In mamalik me sare fehrist Filistin, Syria, Iraq, Yemen, Lebanon, Libya aur Bahrain aate hai; jaha insaniyat ko jhagjhor kar dene wale mazalim dhae ja rahe hai.

Dekhne wali baat ye hi ki ye mazalim kaun kar raha hai, iske piche kya maqsad chipe hue hai, asl me iske piche kaun hai aur is sab me Musalman ka kya kirdar hai.

Agar ham aalami satah par nazar daale to Zulm karne walo me sabse upar Israel nazar aata hai; jisne apne aap ko qayam karne ke liye lakho Filistiniyo ko na sirf khud unke watan se bahar kiya, balki aaj tak un par kai bahano se ek ke baad digar hamle kar ke logo ki jaan le raha hai. Pichla Maahe Ramzan hame yaad hoga jab Israel ne taqriban do mahino tak shaded bambari kar ke kai masumo ki jaane li thi.

Apne najayaz wujud ko jayaz sabit karne ke liye Israel kai tarah ke hile bahano aur tariko ka istemaal karta hai jisme se Media sab se upar hai. Discovery channel par khas programs dikhae jaate hai jisme Israel ke weapons aur technology ko aise bataya jaata hai ki duniya me kisi ke paas nahi hai. Iski bina par aaj ki nasl Israel ko hathiyaaro aur technology ka markaz samajhne lagi hai; jabki Israel khud apne hathiyaaro ki test aur research America ki madad se karta hai.

Israel ke pass khud ko baqi rakhne ke liye zaraae itne kam hai ki America se use roz ka 7 Million Dollars madad ke roop me lena padta hai aur Hathiyaaro ke banane ka kharch bhi wahi se milta hai.

Is sab se sath, Israel itna darpook aur sahma hua rahta hai ki koi chiz hone ke pehle hi chizo ko apni taraf karne ki firaaq me rehta hai, jiske natije me Israel ke padosi mulk ki awaam use bahot zyada nafrat karti hai. Is nafrat ke natije me bahot se aise groups wujud me aae jinhone apna pehla fariza Israel ka khatma qarar diya hai.

Jo bhi fard ya giroh Israel ke khilaaf kaam karta hai, wo aaj ki tarikh me Israel aur America ka sabse badha dushman hai. Aise giroho ko “Moqawamat” ya “Resistance” ke naam se jana jaata hai. Is Moqawamat ki rehbari Jamhuriye Islami Iran kar raha hai. Iran ke sath sabse aage Lebanon ke Hizbullah ka naam aata hai jinhone Israel ko san 2000 me bina kisi shart aur baat ke apni zameen se khaded kar bahar kiya aur san 2006 me 33 dino ki jang me baghair kisi bahari madad ke lohe chaba diye.

Iske baad Filistini giroh Hamas aur Islamic Jihaad ka naam aata hai jo har waqt Israel se sidhe jang ki halat me rehte hai. Ye Giroh Filistine ke Gaza naami ilaaqe se operate karte hai, Gaza wahi jagah jo Israel ki charo taraf se gherao me hai aur Israel apne ladaku jahazo se waha hamesha hamla karte rahta hai.

Hizbullah aur Hamas ko bahari support Syria se Bashar-al-Assad ki hukumat kar rahi hai, aur isi ki bina par America, Israel, Britian aur inke sathi Asad ki hukumat ko girana chahte hai. Isi wajah se unhone ISIS ko wujud me laya aur aaj sari duniya me jiski wajah se Islam ka naam kharab kar rahe hai.

In sab ke saath Yemen ka Resistance giroh “Ansaarullah” bhi is fehrist me shamil hai jispar aaj Saudi Arab ki fauje dusre Arab mamalik, America aur Israel ke sath mil kar hamla kar rahi hai.

Aalami siyasat ke is jaal me Israel ek Shaitani markaz ki haisiyat rakhta hai jiske khilaaf Moqawamati giroh Iran ki sarbarahi me apni zameen, izzat aur waqat ki hifazat kar rahe hai.

Agar ham tarikh me ja kar dekhe to pehle World War ke baad jab Usmania Khilafat tuti, us waqt Middle East me maujood sabhi Arab Mamalik wujud me aae. In sab par Angrezo ne apne pittuo ko hakim banaya taki ye log kabhi inke khilaaf awaaz buland na kar sake. San 1948 me Israel banne ke baad in Arab mamaliko ne naam bhar ke liye Israel ki mukhalifat ki aur mauka milte hi Israel se haar maan kar use muhaaeda kar liya jisme Egypt aur Jordan sabse aage nikle.

Aaj jab Yemen me Ansaarullah ko awaami maqbuliyat hasil hone ke baad Saudi ke chune hue president, Hadi Mansur, ko logo ne bahar ka raasta dikhaya to Saudi ne inhi tamam piththtu mamalik ki madad se Yemen ke masum logo par hamla kar diya.

Iske dusri taraf Iran har us giroh ki khul kar madad kar raha hai jo Israel aur uske sathiyo ke khilaaf kaam kar rahe hai. Iske badle me Iran par aalami taqato ne ek sath mil kar shaded pabandiya (Sanctions) daale, yaha tak ki Iran ko apna oil aur gas bechne par bhi pabandiya laga di. Lekin Ayatullah Khamenei ki rehbari me Iran aur Irani awaam ne zalim taqato ki ek na chalne di aur duniya ko bata diya ki ham hamesha mazloom ke sath rahege aur zalim ke khilaaf.

Islami inqelaab ke baani, Imam Khomeini (r.a) ne duniya ke Musalmano ko tamam mazlumin ki himayat me awaaz buland karne ke liye Mahe Ramzaan ke aakhri Jume ko, jine ham Jumatul Wida kehte hai, Yaum-e-Quds manane ki dawat di hai. Is roz saare aalam me, na sirf Muslaman balki gair Muslim bhi mazlumin ke support me rasto par aa kar aalami taqato ke khilaaf apne gham aur gusse ka izhar karte hai.

Aalami taqate aur unke sathi mamalik aaj ke daur me ho rahe uthal puthal ko Shia Sunni jhagde ki shakl me pesh karne ki koshish me lage hue hai. Kabhi wo Iraq me ho rahe awaam aur ISIS ke bich ki jang ko Shia Sunni ladhai keh kar bulate hai; to kabhi Yemen par hue Saudi hamle ko; kabhi Syria me ho rahe Assad hukumat aur ISIS ki ladhai ko Shia Sunni jang ka naam dete hai. Aisi surat me hame dekhna hoga ki in sab ke piche kya maajra hai.

Agar dhyan de kar dekha jaae to in sab maslo me ek taraf wo giroh shamil hai jo aalami taqato aur unke sathiyo ke khilaaf Moqawamat (Resistance) kar raha hai aur dusri taraf aalami taqat ya unke piththu maujud hai. Iraq me ISIS inhi aalami taqato ki banai gai ijaad hai wahi Syria me bhi wahi haal hai. Yemen me Ansarullah awaam ki taqat hai to Saudi America sahare se in par jabran apna chuna hua president thopne ki zid par ada hua hai.

In sab se ye saaf zahir hai ki aalami satah par ladhai Shia Sunni ki nahi hai balki ladhai Resistance aur Anti-Resistance forces ke bich chal rahi hai. Aise me hamari zimmedari banti hai ki Hindustan aur apne shar / gao ki satah par koi aisa kaam na kare jisse apas me tafreqa ho. Sath hi hame koshish karte rehni chahiye ki amn pasand logo ke bich, bhale hi wo kisi bhi maslak ya mazhab se ho, baatchit aur milne julne ka daur chalta rahe.
Allah ham eek aur nek banne aur ek sath mil kar dushman ka muqabla karne ki taufiq ata kare aur Moqawamat ki aalami rehbatiyat ke batae hue nakshe qadam par chalne ki taufiq de.