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Friday, 24 July 2015

Ayatullah Murtuza Mutahhari ka Filistin ke mauzu par jalali khutba





"शर्म आनी चाहिए हमें अपने आपको मुसलमान कहते हुए।


शर्म आनी चाहिए अपने आपको शिया ए अली इब्न अबी तालिब(अ) कहते हुए।"

आयतुल्लाह मुतह्हरी का ऐतिहासिक और सबसे जलाली ख़ुत्बा फ़िलिस्तीन के मुद्दे पर:

  • अगर पैग़म्बर-ए-इस्लाम(स) आज मौजूद होते तो क्या करते?
  • कौनसा मुद्दा उनके ज़ेहन में हमेशा होता?
  • अल्लाह की क़सम हम ज़िम्मेदार हैं आज इस संकट में।
  • अल्लाह की क़सम हमारे ऊपर ज़िम्मेदारी है।
  • अल्लाह की क़सम हम जहालत में हैं।
  • अल्लाह की क़सम यही मुद्दा आज पैग़म्बर-ए-अक्रम(स) का दिल तोड़ देता।
वह मुद्दा जो हुसैन इब्न अली(अ) के दिल को ग़म से भर देता वह यही है।

अगर हुसैन इब्न अली(अ) आज मौजूद होते तो कहते कि अगर तुम्हें मेरी अज़ादारी करना है, गिरिया करना है, तुम्हारा नारा फ़िलिस्तीन के लिए होना चाहिए।

1400 साल पहले का शिमर मर चुका है, आज के शिमर को पहचानो।

शर्म आनी चाहिए हमें अपने आपको मुसलमान कहते हुए।
शर्म आनी चाहिए अपने आपको शिया ए अली इब्न अबी तालिब(अ) कहते हुए।

वह अली(अ) जो जब सुनते थे कि मुसलमानों पर हमला हुआ है, तो कहते थे:
'मैंने सुना है कि दुश्मन ने यह सितम ढ़ाया है... मुसलमानों की ज़मीन क़ब्ज़ा किया है और लोगों को क़त्ल ओ गिरफ़्तार किया है.. उनकी औरतों की हुरमत को पामाल किया है और उनके ज़ेवर छीन लिया है,....

यह वही अली है जिसके हम शिया अपने आपको कहलाते हैं, इताअत और एहतेराम करते हैं और फ़ख़्र करते हैं,... 
(यही इमाम फरमाते हैं)...

'कि अगर कोई मुसलमान यह ज़ुल्म ओ सितम का ज़िक्र सुने और (ग़म के मारे) मर जाए, तो वह कुसूरवार नहीं है।'

क्या (फ़िलस्तीनी) मुसलमान नहीं हैं? क्या उनके प्यारे नहीं हैं?

अल्लाह की क़सम यह वाजिब है। जैसे नामाज़ और रोज़ा वाजिब है, यह एक वाजिब इन्फ़ाक़ है।

मरने के बाद पहला सवाल यह पूछेंगे की तुमने फ़िलिस्तीन के लिए क्या किया?

रसूलअल्लाह कहते हैं: "अगर किसी ने एक मुसलमान को मदद के लिए पुकारते हुए सुना और जवाब ना दिया, तो वह मुसलमान नहीं है।"

~ शहीद आयतुल्लाह मुर्तज़ा मुतह्हरी (रअ)

"शहीद मुतह्हरी मेरी ज़िन्दगी का फल था।"
~ आयतुल्लाह सय्यद इमाम रूहुल्लाह खोमैनी(रअ)

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