सारी
दुनिया में ज़ुल्म के खिलाफ फैली हुई आग भड़कने के साथ ही मेरे मुल्क को भी छु सी
गई. जब मैंने न्यूज़ चैनल ऑन किया तो देखा की हिंदुस्तान के एजुकेशनल इंस्टिट्यूट
के स्टूडेंट्स नारे बाज़ी कर के अपना विरोध जता रहे थे. कैसा विरोध? किसके खिलाफ
विरोध?
जब
ध्यान दिया तो पता चला की एक कट्टरपंथी ग्रुप कॉलेज में अपनी आइडियोलॉजी को थोपने
पर अड़ा हुआ था और इसके लिए एक प्लानिंग के चलते सरकारी लेवल पर काम किया जा रहा
था. देखते ही देखते एक साल में काफी कुछ बदल गया. लोग जहाँ दुसरे मज़हब के साथ रहने
में कोई परेशानी नहीं महसूस करते थे, अब वहां चेहरों पर शिकन दिखाई देने लगी थी.
येही माहोल कॉलेज और यूनिवर्सिटी में भी दिखने लगा. वहां पर तो मामला मज़हब से भी
आगे बाद गया और सोचने पर भी पाबंदियां लगने लगी.
पुणे के
फिल्म इंस्टिट्यूट हो या फिर हैदराबाद की यूनिवर्सिटी... स्टूडेंट्स को अपनी
नाराज़गी लोगो और मीडिया को बताने के लिए अपनी जान तक देनी पड़ी. कट्टरवादी ग्रुप
चुन चुन कर ऐसे लोगो को मारने लगे जो उनके खिलाफ बोलते थे. इस लिस्ट में पुणे के
दाभोलकर और पंसारे का नाम सबसे ऊपर लिखा गया जिसके बाद कर्णाटक के प्रोफेसर कलबुर्गी
और आंध्र के रोहिथ वेमुला जुड़ गए. इन शहीदों का खून जब बोलने लगा तो देश के हर
स्कूल और कॉलेज से आवाज़ आने लगी.
रूलिंग
बीजेपी को इतने इलज़ाम अपने ऊपर लगते दर लगने लगा और देश विरोधी नारों का एक बहाना
बना कर हिन्दुस्तान की राजधानी दिल्ली में मौजूद जवाहरलाल नेहरु यूनिवर्सिटी में
हमला सा बोल दिया. फिर क्या था, अब तो जंग सीधी शुरू हो गई. स्टूडेंट्स और
हिंदुत्व आइडियोलॉजी को दर्शाने वाले बीजेपी, बजरंग दल, ABVP और मोदी जी की सरकार
आमने सामने खड़े नज़र आए.
इस जंग
में मीडिया ने अपना काम भलीभांति निभाया. कॉर्पोरेट जगत से फंडिंग लेते मीडिया
चैनल्स, सरकार के गीत गाते सुनाई दिए. इक्का दुक्का चैनल्स को छोड़ दे तो बाकी सब
देश के भविष्य होने वाले होनहार स्टूडेंट्स को देशद्रोही और आतंकवादी तक कहने लगे.
जब बात
आई की इस पुरी कहानी को रिपोर्ट किया जाए; बीजेपी और संघ के लोग रिपोर्टर्स और
जर्नलिस्ट पर खुले आम हमला करते नज़र आए. डेल्ही पुलिस मानो सकते में पड़ी हुई सारा
मामला अपनी आँखों के सामने होता देख भी कुछ नहीं कर सकती; ऊपर से आर्डर जो नहीं
थे.
अगर हम
ध्यान दे तो बीजेपी की सरकार आते ही मामला अशहंशिलता का था था जिसमे दो मज़हबो को लड़ाया
जा रहा था. लेकिन अब यह लड़ाई धर्मो से आगे बढ़ कर दो विचारधाराओ की हो गई है. पुलिस
ने JNU में घुस कर स्टूडेंट्स विंग के लीडर कन्हैय्या कुमार को गिरफ्तार कर लिया.
जब कन्हैय्या की सुनवाई पटियाला कोर्ट में तै पाई तो बीजेपी भक्त वकीलों ने कोर्ट
एरिया में मौजूद स्टूडेंट्स पर पुलिस के सामने हमला कर दिया; और पुलिस मुह तकती रही.
यह हाल एक बार नहीं बल्कि 17 फरवरी को दूसरी पेशी में भी हुआ. 17 फ़रवरी को मामले
की संजीदगी को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस डिपार्टमेंटको मुस्तैदी बरतने को
कहा था और कोर्ट परिसर में लिमिटेड लोगो को एंट्री की परमिशन दी थी. लेकिन कोर्ट
के आदेश की परवाह किये बगैर संघी लोगो ने पहले से ज्यादा उत्पात मचाया और
जर्नलिस्ट तक को नहीं छोड़ा.
- क्या यह वही हिन्दुस्तान है जो साड़ी दुनिया में अपनी अम्न और शांति की बुनियाद पर जाना जाता है?
- क्या इसे असहनशीलता नहीं कहेंगे जब अपने से दूसरी फ़िक्र रखने वालो को बर्दाश्त तक ना किया जाए?
- एजुकेशनल इंस्टिट्यूट में स्टूडेंट्स को सोचने की और पढने की आज़ादी के बजाए पाबंदियां लगा दिए जाए और ऐसे फैकल्टी नियुक्त किये जाए जो अपोजिट आइडियोलॉजी को प्रमोट करते है; क्या ऐसे से एजुकेशन का विकास होगा?
ऐसे बहुत
से सवाल है जो हर हिन्दुस्तानी सरकार से पूछ रहा है; लेकिन जवाब के बदले उसे ताने,
डंडे और धमकियां मिल रही है.
कुछ ऐसी
बाते भी है जिन्हें उठाना ज़रूरी है:
- वे कौन लोग थे जो एंटी इंडिया नारेबाज़ी कर रहे थे? क्या इतना बड़ा प्रोग्राम करने वालो की खबर पुलिस को नहीं मिली? अगर मिली थी, तो क्या इसे पहले दौर में रोकने के लिए क्या कार्यवाही की गई? ऐसे नारों को और ऐसे विचारो का सब ने मिल कर विरोध करना चाहिए और पुलिस और सरकार को इन्हें फ़ौरन गिरफ्तार करना चाहिए.
- इन सब के बीच, स्टूडेंट्स लीडर कन्हैय्या कुमार को किस बुनियाद पर गिरफ्तार किया गया? क्या कॉलेज में गलत काम होगे तो लीडर को उठा लिया जाएगा? इसका मतलब, अगर मोदी जी के गुजरात CM रहते वहां दंगे हुए तो उन्हें दोषी बता कर उन पर इसी तरह कार्यवाही होनी चाहिए थी!!
- इंडियन कोर्ट की गरिमा और सम्मान के खिलाफ कोर्ट परिसर में हंगामा करने वालो वकीलों और संघ के कार्यकर्ताओ के खिलाफ भी सख्त से सख्त कार्यवाही होना चाहिए
- जो पुलिस वाले वहां तमाशा देख रहे थे उनका सस्पेंशन होना चाहिए
- JNU, जो की देश का एक प्रतिष्ठित एजुकेशनल इंस्टिट्यूट है, इसकी बदनाम में जो कोई भी अफवाह उडाए, उसपर भी कार्यवाही की जाए
- देश के विश्वविद्यालयो में HRD मिनिस्ट्री को ज़रूरत से ज्यादा दखल देने से रोकने के लिए भी कड़े क़ानून बनाए जाए. HRD मिनिस्ट्री उन कॉलेज और विश्वविद्यालयो को खुली छूट देती है जिन्हें डीम्ड यूनिवर्सिटी बना कर खुले आम धोका धडी और लूट मचाई जा रही है. लेकिन उन कॉलेज में जहाँ इंटेलेक्चुअल अपने हुनर की वजह से पहुचते है, वहां कड़े प्रतिबन्ध लगाए जाते है.
ऐसे
मुद्दों पर अवाम को आगे आ कर सरकार से जवाब तलब करना चाहिए.
इसके
चलते, मज़हबी लोग अपने आप को इन सब से अछुता रखते हुए इस पुरे हादसे को एक सियासी
खेल बताते हुए साइड में बैठे हुए है. यह जानते हुए की अगर देश का भगवाकरण हो गया
तो इससे मज़हब बच नहीं सकता. कुछ लोग तो फिरकावारियत की चादर ओढ़े हुए संघ और बीजेपी
को अपना दोस्त बता कर दुसरे फिरके को आगे में फेकने का काम कर रहे है.
और वो
मज़हब, जिसकी बुनियाद में ज़ुल्म के खिलाफ आवाज़ उठाना लिखा हुआ है और जो सारी दुनिया
में ज़ुल्म होने पर अपनी ड्यूटी समझते हुए हर वक़्त खड़े होते है; आज जब हिन्दुस्तान
में ज़ुल्म के खिलाफ खड़े होने का वक़्त आया तो हैरान और परेशान है की कुछ किया जाए
या खामोश बैठा जाए. मानो जो हो रहा है उससे हमारा कोई सरोकार नहीं है.
इन सब
के चलते अवाम मीडिया चैनल्स की भेट चढ़ रही है और कॉर्पोरेट जगत अपना फाएदा देखते
हुए सरकार की जय जय कार कर रहा है; और देश का सत्या पिट रहा है. एक तरफ मार्किट
अपने निचले स्तर पर है, रुपये की कीमत डॉलर के मुक़ाबले कभी इससे ज्यादा निचे नहीं
गिरी, महंगाई इतनी की ग़रीब भूके पेट सो रहा है और और किसान और स्टूडेंट्स सुसाइड
कर रहे है... और सवाल यह उठता है की हम क्या कर रहे है?
अगर आज
गलत चीज़, गलत आइडियोलॉजी और बातिल के सामने नहीं खड़े हुए तो कल आने वाली नसले हमे
माफ़ नहीं करेंगी. आज अपनी जान की परवाह कर के अगर हम घरो में बैठे रहे तो कल येही
दुश्मन घरो में घुस कर ऐसे खुल खराबा करेंगा की ना मंदिर, ना मस्जिद, ना गिरजा और
ना गुरुद्वारा अम्न की जगह बन सकेंगे.
अगर
हमारे बड़े खामोश है तो उन्हें जगाओ.. अगर नहीं जागते तो खुद बाहर निकलो और सच्चाई
के जुलूस का हिस्सा बनो. अगर बहार जाने में अडचने है तो सोशल मीडिया का इस्तेमाल
करो और अपनी आवाज़ ऊँची उठाओ... लेकिन याद रखो की आज ख़ामोशी खुद अपने साथ और अपनी
मातृभूमि और अपने प्यारे हिंदुस्तान के साथ गद्दारी है.. यार यह गद्दारी माफ़ी के
लायक़ नहीं है.
लेखक:
अब्बास हिंदी
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