दिसंबर 2016 में सीरिया के एक
शहर हलब (अलेप्पो) को सीरियन सरकार विरोधी गुट, जिसमे अल-नुसरा और अल-काएदा शामिल
है, से आज़ादी मिलने के साथ ही पश्चिमी मीडिया ने फेक न्यूज़ कैंपेन चलाया जिसमे इस
इलाके को आतंकवादी गुटों से खली करने की मुहीम को सीरिया की अवाम के खिलाफ सीरिया,
रूस और ईरानी फौजों के द्वारा वार क्राइम्स का केस बताया गया.
सभी मीडिया नेटवर्क जाली सीरियन
एक्सपर्ट्स को किराये पर ले कर उनके इंटरव्यू दिखने लगे; ऐसे एक्सपर्ट्स जो कभी
सीरिया गए ही नहीं; और जो बशार असद को; जो 2014 के इलेक्शन में लोकतांत्रिक तरीके
से सीरिया के प्रेसिडेंट इलेक्ट हुए थे; एक ज़ालिम डिक्टेटर बताने लगे और ये दिखाने
की कोशिश करने लगे की वो अपनी ही अवाम का क़त्ले आम कर रहा है.
सच्चाई की तरफ ध्यान दिया जाए तो पता चलता है की सीरिया की जंग इसरायली / अमेरिका के “न्यू मिडिल ईस्ट” प्रोजेक्ट का एक हिस्सा है जिसमे अरब मुल्को को छोटे छोटे कमज़ोर टुकडो में बातकर और ज्यादा कमज़ोर करना है. खास कर उन मुल्को को जो इजराइल द्वारा फिलिस्तीन के नाजायज़ कब्ज़े के खिलाफ अपनी आवाज़ उठाते है.
यह हकीक़त में एक प्रॉक्सी वार है जो दुनिया के सबसे बड़े आतंकवादी, इजराइल, की हिफाज़त के लिए लड़ी जा रही है. जैसा की उस समय की अमेरिकी विदेश मंत्री, हिलारी क्लिंटन, के “विकी लीक्स” में बहार निकले एक ईमेल से पता चलता है जिसमे उन्होंने लिखा है की “इजराइल की मदद का सबसे अच्छा तरीका है की ताक़त का इस्तेमाल कर के सीरिया की हुकूमत का तख्तापलट किया जाए.”
सीरिया के खिलाफ ये आतंकी जंग की शुरुवात 2011 में सीरिया के अमेरिकी राजदूत, रोबर्ट फोर्ड, ने की थी, जब उसने सीरिया के तख्तापलट के लिए प्लान बनाकर सीरिया में मौजूद आतंकवादी गुटों को एकजुट कर के सीरिया की सरकार के खिलाफ करवाई करने पर उकसाया. राजदूत फोर्ड डॉलर्स से भरा बैग लिए सीरिया के हमा शहर में मुस्लिम ब्रदरहुड के लीडरो से मिला और इन मीटिंग्स को छुपा कर रखा गया.
1982 में जब मुस्लिम ब्रदरहुड ने बशार असद के पिता, हाफिज अल असद, के खिलाफ तख्तापलट की कोशिश की थी, तब सरकार ने मजबूर हो कर ऐसे लोगो के खिलाफ कार्यवाही में 200 से 300 लोगो को मारा था, जिसे अरब और पश्चिमी मीडिया ने बाधा चदा कर बताया. उस हादसे के बाद, असद सरकार से बदला लेने की भावना से और राजदूत फोर्ड के डॉलर्स से, और मिडिल ईस्ट में चल रहे “अरब स्प्रिंग” का सहारा ले कर मुस्लिम ब्रदरहुड सीरियन सरकार के विरुद्ध सडको पर उतर पड़े. शुरुवात में ये विरोध प्रदर्शन शांतिपूर्ण थे, लेकिन धीरे धीरे खून खराबा बदने लगा क्युकी इन प्रदर्शनों में कुछ ऐसे गुंडे मवाली थे जो दोनों तरफ को नुक्सान पंहुचा रहे थे; सीरियन अवाम को भी और सीरियन फ़ौज को भी.
पश्चिमी एशिया का हिस्सा रहते हुए, सीरिया हमेशा से “इसरायली सीक्रेट वर्ल्ड गवर्नमेंट” की वर लिस्ट पर रहा है. सीरिया एक ऐसे हिस्से का पार्ट है जो नेचुरल रिसोर्सेज से भरपूर है, जिसमे ऑइल और गैस भी मौजूद है. सीरियन सरकार हमेशा से ग्रेटर इजराइल प्रोजेक्ट के खिलाफ रही है और इजराइल की किसी भी तरह की सुलह की पेशकश को मानने से इंकार किया है. इसके साथ ही सीरियन सरकार ने इजराइल के खिलाफ जंग लड़ रहे फिलिस्तीनी गुट और हेज्बुल्लाह का हमेशा से साथ दिया; खास कर 2006 के लेबनान पर इसरायली हमले के वक़्त.
इन सब के साथ, सीरिया हमेशा से आर्थिक तौर पर मज़बूत देश रहा है, जहा पर सरकार का बजट ज्यादा और कर्जे बिलकुल ही नहीं थे, जिस की वजह से सीरिया को रोश्चाइल्ड सूदखोर इंटरनेशनल बैंकोसे कर्जा लेने की ज़रूरत कभी नहीं पड़ी. सबसे ज़रूरी बात यह की इराक की तरह सीरिया यहूदियों की सीक्रेट वर्ल्ड गवर्नमेंट की वार लिस्ट में ईरान की फ्रंट लाइन में आता है.
सीरिया पर जारी आतंकी जंग का मक़सद पुरे सीरिया को बर्बाद कर के उसे जितना हो सके लोगो से खली करा कर, उसके छोटे छोटे टुकड़े कर के ऐसे लोगो के हाथो में उसकी बागडोर देने से है जहा अमेरिकन प्यादे राज कर सके जैसे क़तर और बहरैन में हो रहा है.
ये मक़सद हासिल करने के लिए इस जंग में अरबो डॉलर्स झोक दिए गए, खास कर अमेरिकन और यूरोपियन टैक्स का पैसा. साड़ी दुनिया से, जैसे की यूरोपी देशो के मीडिया आउटलेट्स ने बहोत बार बताया है की, खास तौर पर चुने गए जल्लाद लोगो को सिलेक्ट कर, उन्हें पैसे दे कर, उनकी मिलिट्री ट्रेनिंग करवा कर और हजारो टन वेपन्स दे कर टर्की की सीमा के रास्ते उन्हें सीरिया भेजा गया. कुछ लोगो को जॉर्डन, लेबनान, सऊदी अरबिया और इराक से भी सीरिया भेजा गया.
लोगो को ब्रेनवाश करने के लिए एक बहोत बड़ा प्रोपगंडा कैंपेन हजारो पश्चिमी मीडिया, टेलीविज़न नेटवर्क, न्यूज़ पेपर्स, सोशल मीडिया, बेवकूफ नेताओ, यहूदी रबी, तक्फिरी मुस्लिम शेखो और बहके हुए पोलिटिकल एक्टिविस्ट्स को इस्तेमाल कर के सीरिया में हो रहे आतंकवाद को सही साबित किया गया.
पश्चिमी मीडिया चाहता है की हम यकीन कर ले की सीरिया में चल रही जंग एक सिविल वार है, जबकि ऐसा नहीं है. यह जंग एक बहार से थोपी हुई जंग है जिसकी डिजाईन अमेरिकी एडमिनिस्ट्रेशन ने करी है. इसके बारे में एक अमेरिकी पीस कौंसिल के प्रेसिडेंट अल्फ्रेड मारडर ने उनकी 14 सितम्बर 2016 की सीरिया विजिट के बाद कहा था की सीरिया की जंग एक सिविल वार नहीं है जहा असद खुद अपने लोगो का क़त्ले आम कर रहा है, बल्कि यह जंग असद और सारी सीरियन जनता के खिलाफ बाहर से आए हुए आतंकवादी मिल कर लड़ रहे है जिन्हें क़तर, सऊदी अरब, टर्की, अमेरिका और इजराइल जैसे देश हर तरह से मदद कर रहे है.
इजराइल हमेशा से ही सीरिया को ख़त्म करना चाहता है क्युकी सीरिया ने हमेशा से फिलिस्तीन के मसले की मदद करी है और 2006 में इजराइल हिजबुल्लाह जंग में भी सीरिया ने हिजबुल्लाह की खुल कर मदद की थी. इजराइल आज सीरिया के आतंकवादियों की हथियारों से मदद कर रहा है और इन आतंकवादियों को अपने अस्पतालों में इलाज भी दे रहा है.
अमेरिकी सरकार सीक्रेट वर्ल्ड गवर्नमेंट वार प्लान को फॉलो कर रहा है और इजराइल की प्रॉक्सी जंग खेल रहा है. विएतनाम वार के वेटेरन जॉन मैक कैन ISIS के सरगना, अबू बक्र अल बगदादी के साथ मिल कर काम कर रहा है, जिसकी मदद के लिए अमेरिका ने टनो के हिसाब से हथियार आतंकवादी गुटों को दिए है.
अमेरिकी गुट की सेनाए जिसमे अमेरिका, नाटो, टर्की, इजराइल, सऊदी अरब और क़तर शामिल है, इन सब ने भी अपने फौजी अफसरों को इन आतंकवादियों को ट्रेन करने, उन्हें डायरेक्शन देने और सुपरवाइज़ करने के लिए सीरिया भेजा है. ऐसे बहोत से अफसर सीरियन फ़ौज द्वारा गिरफ्तार भी किये गए है.
गोला बारूद के साथ साथ, अमेरिका ने इन आतंकवादियों को केमिकल हथियार भी दिए, जिनका इस्तेमाल इन आतंकवादियों ने सीरिया की आम जनता पर कई बार किया और इसका इलज़ाम असद सरकार पर डालने की कोशिश करी, जिसे बुनियाद बना कर अमेरिका ने सीरिया में दखल देने की बहोत बार नाकाम कोशिश भी करी.
6 मई 2013 में BBC ने रिपोर्ट भी किया था की आतंकवादियों ने केमिकल हथियारों का इस्तेमाल किया है. 13 दिसम्बर 2013 में UN मिशन रिपोर्ट ने भी कन्फर्म किया था की बागी गुटों ने सीरिया की जनता पर केमिकल हथियार इस्तेमाल किये. पश्चिमी मीडिया ने बार बार इसका इलज़ाम असद सरकार पर डालने की नाकाम कोशिश करी.
आतंकियों को केमिकल
हथियार देने में सबसे ऊपर नाम सऊदी अरब का आता है. हलब (अलेप्पो) की आज़ादी के बाद
सीरियन सरकार ने बड़े लैब ज़ब्त किये जहा आतंकवादी केमिकल हथियार बनाते थे. सरकार ने
आतंकियों से पकड़ी गई मस्टर्ड गैस का सैंपल OPCW को सबूत के तौर पर दे किया है.
क़तर और सऊदी अरब सीरिया
को बरबाद करना चाहते है क्युकी उनके प्लान के मुताबिक सीरिया से हो कर तुर्की के
रास्ते यूरोप जाने वाली क़तर और सऊदी गैस और आयल की पाइपलाइन के लिए असद ने पैसा
लगाने से मन कर दिया था. इसी वजह से तुर्की भी सीरिया के खिलाफ जंग में जुड़ गया
था.
अगर यह गैस और आयल की
पाइपलाइन तुर्की से चली जाती, तो तुर्की की एरदोगन फॅमिली को करोडो डॉलर्स मिल
सकते थे. लेकिन तुर्की ने अपना नुकसान आतंकवादियों द्वारा सीरिया से चुराए हुए आयल
को ब्लैक मार्किट में बेच कर पूरा कर लिए. तुर्की ने आतंकियों से सीरिया के
इंडस्ट्रियल एरिया के लुटे हुए स्क्रैप खरीद कर भी खूब पैसा कमाया है.
शुरुवाती दौर में अकेली
सीरियन सरकार इन आतंकियों से लड़ रही थी. जब हजारो की संख्या में दुसरे देशो से
आतंकवादी सीरिया आ कर अपना पक्ष मज़बूत कर रहे थे तब दुसरे पडोसी देश जैसे लेबनान,
इराक और ईरान को भी ज़रूरत महसूस हुई की आज अगर इन आतंकवादियों को नहीं रोक गया तो
कल उनका भी नंबर आ सकता है, इसलिए इन देशो ने भी सीरियन सरकार का साथ दिया.
सीरिया में रूस के चेचेन
से आए हुए आतंकवादी भी लड़ रहे थे. इस डर से की कही बाद में यह आतंकवादी रूस वापस
आकर रूस से लढाई न करने लगे, इन आतंकवादियों को सीरिया में ख़त्म करना ज्यादा आसान
था.
बशार असद 2000 के चुनाव
में प्रेसिडेंट चने गए थे जिसके बाद सीरिया एक बेहतरीन देश बन कर सामने आया था
जहाँ पर अलग संस्कृति और धर्म मिलते थे; जहाँ पर अलग अलग धर्मो के लोग जैसे शिया,
सुन्नी, अलवी मुस्लिम; इसाई धर्म के मसलक; द्रुज़, यहूदी; इसी के साथ अलग नस्ल के
लोग जैसे अरब, कुर्द, तुर्कमेन, आर्मेनियन एक साथ ख़ुशी ख़ुशी ज़िन्दगी बिता रहे थे.
मस्जिदों, चर्चो, स्कुलो, अस्पतालों और मिलो की संख्या बड रही थी. एक उपजाऊ ज़मीन
होने के नाते सीरिया से गेहू, कपास और दवाइयों का एक्सपोर्ट भी बहोत बढ़ रहा था.
सीरिया के साथ साथ
लेबनान, इराक, लीबिया और पश्चिमी एशिया के दुसरे देश भी काफी सुरक्षित और शांत थे;
लेकिन जैसे ही इजराइल नाम के सबसे बड़े आतंकी ने फिलिस्तीन की ज़मीन को अमेरिकी मदद
से अपने कब्ज़े में लेना शुरू किया इस ज़मीर पर युद्ध की शुरुवात हो गई. फिर वार ऑन
टेरर के नाम पर एक के बाद दुसरे देश को बारबार कर के उस पर कब्ज़ा किया जाने लगा.
और वह के लोगो की इच्छा के विरुद्ध सरकार को गिराने और बदलने का सिलसिला शुरू हो
गया जिसका नतीजा आज सीरिया की शक्ल में हमारे सामने है.
इसे शिया सुन्नी जंग का
नाम देना भी पश्चिमी मीडिया और अमेरीका / इजराइल की एक चाल है. इस दुनिया के एक
जागरूक नागरिक होने के नाते हमारी ज़िम्मेदारी है की इस मसले को समझे और असली
दुश्मन को पहचान कर उसके खिलाफ लादे; ना की हम आपस में लड़ते रहे.
लेखक: डॉ. एलियास अक्लेह
अनुवाद: अब्बास हिंदी
No comments:
Post a Comment