लोकतंत्र की बुनियाद सदन, न्यायपालिका और मीडिया पर टिकी हुई है जिनमे से हर एक बहुत महत्वपूर्ण है। इन तीनो का एक दुसरे से अलग और आत्मनिर्भर होना भी बहुत ज़रूरी है; नही तो यह लोकतंत्र के लिए घातक साबित हो सकता है।
हिंदुस्तान के आज के हालात देखे तो पता चलता है कि सदन के अंदर बैठने वालों ने दूसरे दो स्तम्भ पर अपना कब्जा जमाने की भरपूर कोशिश कर रखी है। जिसमे न्यायपालिका अपने आप मे पूर्णसंपर्ण दिखाई देती है, लेकिन मीडिया का हाल उतना ठीक नही है।
किसी भी समाज मे मीडिया का काम वहां की हक़ीक़त को लोगो तक पहुचाना, सरकार के कामो में बाकी बची कमियों को उजागर करना, विपक्ष के उठाए हुए मुद्दों को सामने लाना और देश में काम कर रहे एक्टिविस्ट लोगो की मेहनत को ज़िन्दगी देना होता है।
जिस समय किसी समाज / देश का मीडिया वहां की सरकार की कमियां निकालने की बजाए सरकार की जय जय कार करने लगे.. हमे समझ लेना चाहिए कि लोकतंत्र में सबकुछ ठीक नही चल रहा है।
यह एक कड़वा सच है जिसे हमे सुनना ही पड़ेगा और इसे अपने अहम पर लेने की बजाए दिमाग से सोचना पड़ेगा कि क्या वजह हो गई कि मीडिया सरकार की हां में हां मिला रहा है? क्या बात हो गई कि सरकार को कटघरे में खड़ा करने वाले गोस्वामी और शर्मा सरकार के सामने भीगी बिल्ली बने हुए है?
सरकार को सवाल पूछने की बजाए समाज के एक्टिविस्ट लोगो से क्यों सवाल पूछे जा रहे है?
मीडिया के इस गैरज़िम्मेदाराना रवैये की वजह से समाज का काफी नुकसान पहले ही हो चुका है। सरकार समर्थित मीडिया सरकार के फायदे के लिए लोगो को लड़ा देता है और सारा इल्ज़ाम लोगो के माथे फोड़ देता है। जिससे सरकार पर कोई आँच नही आ पाती। और नाजाने कितनी ही कमज़ोरी के बावजूद सरकार के गुणगान होते रहते है।
व्हाट्सएप पर पिछले दिनों एक मैसेज आया जिसमे लिखा था कि अगर आप मुसलमान हो और आप को लगता है कि जिस देश मे आप दहाइयो से रह रहे है वो अचानक से आप के लोए सुरक्षित नही रहा या अगर आप दलित है और आप को लगता है कि आप अचानक छुआछूत के शिकार हो रहे है तो एक काम करिए; न्यूज़ और सोशल मीडिया से दूरी बनाए रखिये, आप को देश बहोत ही कुशल मंगल दिखाई देगा।
बात तो पते की है! लेकिन क्या यह कहना सही रहेगा की हम अपनी आँखे बंद करे क्युकी मीडिया गलत खबरे दिखा रहा है लेकिन मीडिया गलत दिखाना बंद नहीं करेगा. लेकिन जब मीडिया सरकार की जय जय कार कर रहा है तो फिर माहोल क्यों बिगड़ रहा है? यह भी एक सवाल रहेगा.
सवाल यह भी है की क्या हमारे देश में अखलाक को मारा नहीं गया और उस पर राजनीती नहीं हुई? क्या गुजरात के उन्नाव में बेगुनाह दलितो को बेरहमी से पीटा नहीं गया? रोज़ रोज़ यह अफवाह क्यों फ़ैल जाती है की किसी मुस्लमान के घर में गाय का मांस मिल गया और फिर वहां मर्दों को मार दिया जाता है और औरतो के साथ बलात्कार जैसे घिनौने अपराध तक किये जाते है. ऐसा ही कुछ दलितों के साथ भी क्यों होता है?
जब सब कुछ ठीक चल रहा है और सरकार की जय जय कार करने वाला मीडिया ही देश का असली दुश्मन है है तो फिर देश असहिष्णु क्यों हो रहा है? सहारनपुर क्यों जल रहा है?
ऐसे बहोत से सवाल है जिनके जवाब आप और मैं नहीं दे सकते, जवाब पाने के लिए आँखे बंद करने की नहीं बल्कि आँखे खोलने की ज़रूरत है. देखने की ज़रूरत है की जो हो रहा है वो क्यों हो रहा है. हमारे प्यारे देश को आप और मेरे जैसे लोग ही मिल कर बनाते है और इसकी बागडोर हमारे ही हाथो में है.
लेकिन ये कुछ असामाजिक तत्व सरकार की आड़ ले कर राजनितिक मंशा के चलते देश में क्यों आग फैला रहे है? और बिकाऊ मीडिया इसी आग को बहुत बड़ी बता कर समाज के किसी खास तबके का सपोर्ट ले रहा है.
सरकार को तो वही चाहिए. पिछली सरकार को इसी मीडिया ने वोट बैंक पॉलिटिक्स के नाम से बदनाम किया था लेकिन इस सरकार को क्यों कोई सवाल नहीं पूछे जा रहे है? जबकि समाज में खून तो पहले से भी ज्यादा बह रहा है.
बिकाऊ मीडिया को अगर इसी तरह सराहा जाता रहा तो वह दिन दूर नहीं की हमारे प्यारे देश में लोग एक दुसरे के दुश्मन हो जाएगे और सरकार सिर्फ उन्ही लोगो का पक्ष लेगी जिनसे उन्हें जीतने की उम्मीद है. इसे भी वोट बैंक पॉलिटिक्स ही कहा जाता है.
आज देश के समझदार लोगो की ज़िम्मेदारी है कि बात को संगीदगी से समझे और आँखे खोलने की बात करे ना की यह कहते फिर की न्यूज़ मीडिया को मत देखा करो. बात यह कहे की मीडिया को ज़िम्मेदारी के साथ अपना कंटेंट दिखने की ज़रूरत है. और जानता को समझदारी के साथ सवाल करने की ज़रूरत है. जिस दिन यह समझ लिया जाएगी कि किसी पार्टी विशेष की सरकार दूध की धूलि हुई है तो वह दीन लोकतंत्र के लिए सबसे खतरनाक दिन होगा.
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